उत्तर प्रदेश में भी 26 जनवरी के दिन सभी परदेशवासी गणतंत्र दिवस के पर्व को बड़े हर्षोउल्लास के साथ माना रहे थे जैसे के सारा देश मना रहा था।हर तरफ देश भक्ति के गीत बजाए जा रहे थे जिसे सुनकर रोम रोम सिहर उठता था एक अजीब सा जुनून आ जाता था ऐसा अक्सर 26 जनवरी या 15 अगस्त के दिन होता है एक माहौल सा बन जाता है ऐसा माहौल जो बताता है कि ये दिन देखने के लिए हमारे देश ने कितनी कुर्बानियां दी थी।
ऐसा ही जोश उस वक़्त उन युवाओं में दिखता है जो इस मौके पर देश का झंडा ले कर झुंड के साथ निकलते हैं साथ ही भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारे लगाते हैं।ये देखने सुनने में अच्छा भी सभी को लगता है सभी नारो में अपनी आवाज़ मिलाते है क्योंकि देश उन सभी का है जो देश का नागरिक है।लेकिन ऐसे में भी हादसा क्यों होता है ये समझने वाली बात है जो सभी के समझ मे भी आ ही गई होगी जैसा कि हमारे देश मे अंग्रेज़ किया करते थे अगर वैसा ही देश का नागरिक करने लगे तो अंजाम ज़ाहिर तौर पर हादसे पर जा कर ही खत्म होगा, किसी को किसी बात के लिए मजबूर करना ही हादसे को जन्म देने का काम करता है जो कासगंज में हुआ हम सभी देश से कितना प्यार करते है इसका किसी को सुबूत देने की कोई ज़रूरत नही क्योंकि प्यार करते हैं तभी देश मे रहते हैं तो फिर ऐसे नारे क्यों जिससे बगावत की बू आये।
हमारा देश भले ही बड़ी दिक्कतों का बाद आज़ाद हो गया हो ये सही है कि हमने अंग्रेज़ो को देश से खदेड़ दिया है पर अभी देश को उस मानसिकता से आज़ादी नही मिल पाई है जिसको हर कीमत पर राज करने का मौका चाहिए।
माना कि कासगंज में गर्मागर्मी का ऐसा माहौल बना जिससे एक युवक को अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया ये भी माना कि उसके बाद वहां का माहौल शांत और सहमा हुआ सा हो गया घटना ऐसी घटी के सबकी आंखे नम हो गई लेकिन सवाल ये उठता है कि उस माहौल को भयावह किसने बनाया किसने एक हादसे को ऐसा रंग दे दिया जिस कारण वहां कर्फ्यू लगाने तक की नोबत आ गई कौन थे वो लोग जो वहां आगजनी और लूट पाट करने लगे आखिर अमन चैन का दुश्मन है तो वो है कौन?
ज़ाहिर है सरकार को इसका दोषी नही ठहरा सकते क्योंकि अपने शासनकाल में बवाल कोई सरकार नही चाहती विपक्ष को भी इसके लिए ज़िम्मेवार नही ठहरा सकते क्योंकि एक अकेले उसके हाथ पैर चलाने से कुछ नही हो सकता क्योंकि शासन उसके हाथ मे नही तो हम दोष दें तो दें किसको,तो यहां हम पक्ष और विपक्ष दोनो को क्लीन चिट दे तो ज़रूर रहे हैं पर इतना ज़रूर कह रहे हैं कि ये जो भी हो रहा है ये सत्ता सुख के लिए ही हो रहा है और ये वो नही कर रहे जो वहां है बल्कि ये वो करवा रहे हैं जो ये चाहते है कि वो वहां हों।