लखनऊ,अनीसुर रहमान:NOI।एक समय था ,जब भारत मे अंग्रेजो ने यहाँ के किसानो से जबरदस्ती नील की खेती
कराते थे ,नही करने उन्हे कई तरह के टैक्स चुकाने
पड़ते थे।तब 15 अप्रैल
1917 को महात्मा गांधी ने बिहार के चम्पारण से सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत कि थी जो की भारतीय ईतिहास मे किसानो को लेकर बडा़ आंदोलन था ,और उसमे सफलता भी मिली।लेकिन चंम्पारण सत्याग्रह के सौ साल बित जाने के बाद भी किसानो कि स्थीति मे सुधार नही है, चंम्पारण सत्याग्रह को लेकर कई संगठनो ने उत्सव के रुप मे मनाया ,लेकिन किसानो को लेकर कही कोइ बात नही हुई ।जिस देश मे 65फिसदी से ज्यादा लोग कृषी पर हो, अगर वहा के किसान लाचार हो ,बेबस हो,तो उस देश के अर्थव्यावस्था के लीए गंभीर सवाल है ।भारत मे ज्यादातर छोटे किसान कर्ज लेकर खेती करते है,कर्ज वापस करने के लीए फसल का बेहतर होना जरुरी है।माँनसुन ठीक से नही बरसने पर फसल खराब हो जाता है ।अब किसानो के सामने खाने के साथ साथ कर्ज चुकाने का भी संकट खड़ा हो जाता है ,ऐसी स्थीति मे वो बैंको ,बिचौलिए के चक्कर में फँस जाते है, और बाद में कर्ज के बोझ तले दब कर के आत्महात्या करने को विवश हो जाते है।
पहले यह समस्या महाराष्ट मे थी बाद मे यह पंजाब ,केरल, कर्नाटक ,मध्यप्रदेश यदि राज्यो मे भी आने लगी।आज गन्ना किसानो कि हालत खराब है ,कहा जाता है कि किसान भारत कि आत्मा है।लेकिन आज भारत कि आत्मा रो रही है।भारतीय अर्थव्यावथा कि रीढ् माने जाने वाले किसानो का योगदान राष्टिय आय मे घट रहा है जो कि चिन्ता का विषय है और इस पर गंभीर विमर्श कि आवशयकता है।N.c.r.b के ताजा आंकडो मे किसानो के आत्महात्या करने के मामले मे 42% कि बढोतरी हुई है ।सबसे ज्यादा महाराष्ट मे मामले आए है।30 दिंसबर 2016 को जारी Ncrb के रिपोर्ट एकिक्सडेंटल डेथ्स
एंड सुसाइड़ इन इंडिया 2015 के मुताबिक ,साल 2015 मे 12,0602 किसानों और खेती से जुड़े लोगो ने आत्महात्या की।सबसे अधिक महाराष्ट मे 4291,कर्नाटक 1569 मध्यप्रदेश 1290 तमिलनाडु मे 606 मामले सामने आए है।
1995 से लेकर 2013 तक 2,96,438 किसानो ने आत्महात्या की है ।वर्तमान समय मे हर साल 10000 औसतन किसान आत्महात्या कर रहे है।1997 मे 13000 से अधिक 2013 मे 11हजार से अधिक किसानो के आत्महत्या के मामले सामने आते है जो कि कृषी प्रधान देश के लीए भयावह स्थीति है।हांलाकि ये सरकारी आंकडे है।
देश मे अभी कुछ ही दिन पहले तक तामिलनाडु के किसान कर्ज माफ़ी को लेकर लगातार चालिस दिनो तक दिल्ली के जंतर मंतर पर जमे रहे ,और सरकार का ध्यान खिंचने के लिए ,मुह मे कभी चुहा दबाए,तो कभी सड़क पर दाल भात खाए, यहां तक कि उन्होने मुत्र भी पिया,पी.एम.ओ. के बाहर नंगे भी हुए ।हर दिन अलग अलग तरिके से प्रर्दशन को गति देते रहे ।लेकिन हमारे कुछ राजनेता वहा पहुचे जरुर लेकिन महज सहानुभुती देने या हाजरो लगाने कि नियत से।
किसी ने किसानो के इस लडाई को लडने की बिडा़ नही उठाई ।मिडीया मे भी अब जब किसान आत्म हात्या करते है तभी कही दिख जा रहे ।जब किसान नंगे होकर प्रर्दशन कर रहे तो सिरफ् किसान ही नंगे नही हुए ब्लकि इस देश की व्यवस्था भी नंगी हुई है। ये सब देखने और समझने के बाद ऐसा महसुस होता है कि किसानो कि बात तो सब करते है लेकिन उनको लेकर कोई भी दल प्रतिबद्ध नही दिख रहा है ,किसानो मे भी कोई मजबुत संगठन नही रहा ।
जो किसानो की लडाई लड सके ,किसानो मे सिधे तौर पर नेत्ततृव का आभाव दिख रहा है।वास्तव मे ये सारी सम्स्याय एक कृषी ्प्रधान देश के लीए गंभीर समस्याय है और इस पर गंभीरता से विचार करने कि जरुरत है ।मेरे देश कि धरती सोना उंगले उंगले ,हिरा मोती मेरे देश की धरती।इसको बचाए रखना और बनाए रखना हम सब कि जिम्मेवारी है।
ऐसा नही है कि सरकार कुछ नही कर रही है।कृषी और किसान कल्याण के लिए 35984 करोड़ रु. का बजट आवंटन किया है ,जो कि बताया गया कि पिछले बजट 2015-16 से दुगुना है।लेकिन ये करना ही काफी नही है,किसानो को लेकर सरकार को और गंभीरता से काम करनी होगी ,तब कही न कही जाकर देश के किसानो कि स्थीति मे सुधार संभव हो सकेगा ।