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Tuesday, September 10, 2024

​क्या वरुण गांधी को  सियासी हैसियत का पता चल गया, क्यो बदले बदले नजर आये सुल्तानपुर में?

लखनऊं,NOI। इसी गुरुवार को खुद को नेहरू गांधी परिवार का सपूत समझने वाले भाजपा सांसद वरुण गांधी बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अचानक सुलतानपुर जिला पहुंंच गये। यहां उन्होंने लोगों से बातचीत की। उनकी समस्याएं सुनी और उनके समुचित समाधान कराने का आश्वासन भी दिया।

यहां तक तो बात समझ में आती है। सामान्यतः हर राजनेता यही कहता और करता है। इसलिये यदि वरुण गांधी ने भी ऐसा कुछ किया, तो इसमें असामान्य जैसा कुछ भी नहीं। लेकिन, इसके बाद उन्होंने यहां जो कुछ कहा, वह अवश्य ही असामान्य कहा जा सकता है।उठ रहे हैं तमाम सवालबताया जाता है कि एक स्थान पर लोगों से बातचीत करते हुए उन्होंने बिना किसी संदर्भ के अनायास की यह कहना शुरू कर दिया कि वह भी हिंदू हैं। उनकीय दिनचर्या हनुमान चालीसा के पाठ से ही शुरू होती है और रात में सोने के पहले वह देवी मॉ की आराधना अवश्य करते हैं।

इसी बात को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि वरुण गांधी को अचानक और सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? क्या अब उनकी समझ में यह बात आ गयी है कि जल में रहकर मगर से वैर करकेत नहीं रहा जा सकता है। चाहे वह कोई भी हो? इसी के साथ ही ये सवाल भी उठाये जा रहे हैं कि क्या गांधी नेहरू परिवार का दीपक होने का उनका दंभ अब मोदी और अमित शाह के सामने मोम की तरह पिघल गया है? क्या उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पद के लिये सार्वजनिक रूप से योग्य कहने वाली उनकी मॉ और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी अथवा वरुण के राजनीतिक आदर्श गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें अब अपना रास्ता बदलने की कुछ ऐसी ही सलाह दी है?

क्या अब खुद उन्हें भी इस बात का भी बहुत अच्छी तरह एहसास हो गया है कि जिन गृहमंत्री राजनाथ सिंह के वह परमप्रिय और विश्वसनीय रहे हैं, उनके भी बूते अब उनका राजनीतिक उद्धार नही हो सकता है? इसलिये अब उनके लिये मोदी और अमित शाह का शरणागत होना बहुत जरूरी है। मोदी के खिलाफ बगावती रवैयाजो भी हो। इस बारे में वरुण गांधी अथवा उनकी मॉ मेनका गांधी से अच्छा और कौन बता सकता है। लेकिन, एक बात है कि काठ की हाडी एक ही बार चढती है।

राजनीति में साख और विश्वास का होना बहुत जरूरी है। यह न हुआ, तो लोग उसे मिर्जापुरी लोटा ही समझते हैं। वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे मिजाज के राजनेता को, जिन्होंने आडवाणी और जोशी जैसे भाजपा के भीष्म पितामहों को उनकी औकात पर ला दिया है। वरुण गांधी चाहे जैसी राजनीतिक करवटें बदले, मोदी और शाह के नजरों में उनका जम पाना संभव नहीं जान पड रहा है। ये दोनों राजनेता वरुण गांधी की उन बातों और हरकतों को कैसे भूल सकते हैं, जिसे एक तरह से उनके खिलाफ बगावत जैसी कहा जा सकती है।

यह रहा वरुण गांधी का पिछला रिकार्ड मसलन, जिस समय नरेंद्र मोदी अपना सारा राजनीतिक भविष्य दांव पर लगाकर स्वयं को भाजपा का सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित करने की जीतोड कोशिशें कर रहे थे, उसी दौर में इन्हीं राजनाथ सिंह और वरुण गांधी की जुगलजोडी में से एक ने बरेली की एक जनसभा में नारा लगवाया था कि ‘देश का प्रधान मंत्री कैसा हो, राजनाथ सिंह जैसा हो।’ इसके तुरंत बाद दूसरे ने भी इसी पर ताल देते हुए नारा लगवाया कि ‘उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री कैसा हो, वरुण गांधी जैसा हो।’ अति उछ्दाम राजनीतिक महत्वाकांक्षा होने के कारण इन दोनों को ही इस सच का ध्यान नही रह गया कि नारे लगवाने से कोई भी व्यक्ति न तो प्रधान मंत्री बन सकता है और न मुख्यमंत्री ही।

बात इससे भी बहुत आगे बढ गयी थीबात सिर्फ इतने तक ही सीमित रहती, तो भी काम चल सकता था। लेकिन, कदम इससे भी कहीं ज्यादा बढा लिये गये थे। जब भाजपा में नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री बनाने के लिये जबरदस्त द्वंद हो रहा था, उसी समय इन्हीं वरुण गांधी ने राजनाथ सिंह की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी से करते हुए उन्हें ही प्रधान मंत्री बनाये जाने की पुरजोर वकालत की थी। वरुण की नजर में अटल जैसे ही हैं राजनाथ सिंह याद कीजिये एक मई, 2013 को बरेली की एक जनसभा में राजनाथ सिंह की मौजूदगी में वरुण गांधी के कहे इन शब्दों को कि, ‘वाजपेयी की सोच बहुत अच्छी थी। उनका शासनकाल देश के हर बच्चें को याद है। मै पूरे भरोसे के साथ कह सकता हॅू कि आज की तारीख में देश में कोई व्यक्ति जाति और मजहब की दीवार तोडकर लोगों को साथ ला सकता है, तो वह आदरणीय राजनाथ सिंह हैं।’

इसके अलावा, वरुण गांधी ने और भी बहुत कुछ किया और कहा है, जिसका विस्तारभय के कारण उल्लेख संभव नही है।यह तो होना ही थाइसके बाद राजनाथ के लाख न चाहने पर भी उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर अमित शाह को उस पद पर आसीन किया गया, तो शाह ने वरुण गांधी को पाट्री के राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटाने में देर नहीं की थी। इतना ही नहीं, उनसे पश्चिमी बंगाल के प्रभारी पद की भी जिम्मेदारी ले ली गयी। इसके बाद अगस्त 2014 में अमित शाह की नई टीम में वरुण गांधी का नाम नदारद था। उन्हें पार्टी के महासचिव के पद से हटा दिया गया। नतीजतन, आज की तारीख तक वरुण गांधी की राजनीतिक हैसियत गुमनाम जैसी चल रही है। लेकिन, इसके बावजूद, गांधी परिवार के इस कुलदीपक को होश नहीं आ सका। यही वजह है कि पिछले साल जून में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वरुण गांधी के समर्थकों ने इनकी राजनीतिक हैसियत जताने की कोशिश की थी। लेकिन, मोदी और शाह को यह जरा भी रास नहीं आया।

वरुण गांधी का सियासी भविष्यअतः इस अत्यंत विषम राजनीतिक स्थिति में वरुण गांधी को कम से अब यह सोचना ही होगा कि भाजपा में उनकी अपनी सियासी हैसियत क्या है? उनकी संघ की पृष्ठभूमि नहीं है। वह स्वतंत्र रूप से सोचने और अपनी मनमर्जी से काम करने वाले व्यक्ति हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा में रहकर अपने राजनीतिक भविष्य के लिये इस बात पर बडी गंभीरता से विचार करना होगा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ओर भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश में किसी भी ऐसे भाजपाई को उभरने नहीं देंगे, तो भविष्य में उनसे बडा नेता अथवा उन्हें चुनौती दे सकने के काबिल साबित हो सके।

भाजपा के दो ताकतवर मुख्य मंत्री रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान से इन दोनों को कुछ ऐसा ही संकेत मिल चुका है। दूसरी ओर, वरुण गांधी हैं, जो भाजपा में सिर्फ एक सांसद की ही हैसियत से अपना राजनीतिक जीवन नहीं खपा देना चाहते हैं। वैसे भी देश को कांग्रेस मुक्त करने का हर संभव प्रयास करने वाले मोदी-शाह की जोडी के रहते इनका भविष्य अच्छा हो भी नहीं सकता है।

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