नई दिल्लीः नीतीश कुमार के बिहार में महागठबंधन तोड़ बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के फैसले से नाराज चल रहे जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव के नीतीश से अलग होने की अटकलें तेज हो गई हैं. शरद यादव नीतीश के फैसले से खुश नहीं है, उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने वोट महागठंधन को दिया था ना की बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को. शरद यादव ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के नीतीश के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. शरद के करीबी ने जहां यह तक कह दिया कि शरद यादव नई पार्टी बनाएंगे. लेकिन गुरुवार को शरद यादव ने स्पष्ट कर दिया कि नई पार्टी बनाने का सवाल ही नहीं हैं.
ऐसे में अब सभी निगाहें 19 अगस्त को पटना में होने वाली जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक पर टिकीं हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें इस दिन शरद यादव नीतीश कुमार के साथ अपना डेढ़ दशक पुराना नाता तोड़ सकते हैं. वैसे तो शरद यादव नई पार्टी बनाने के बारे में अपने विचार को स्पष्ट कर चुके हैं लेकिन नीतीश से अलग होने के फैसले पर अभी भी संशय बना हुआ है. आपको बताते हैं कि वो क्या कारण हो सकते है जिसकी वजह से शरद यादव नीतीश कुमार से अलग हो सकते हैं.
जेडीयू से दरकिनार
शरद यादव जदयू के संस्थापकों में एक हैं लेकिन आज वो केवल राज्य सभा सांसद भर हैं. वह उच्च सदन में पार्टी के नेता हैं लेकिन कब तक रहेंगे कहा नहीं जा सकता. पिछले साल नीतीश कुमार शरद यादव को हटाकर खुद जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष बन गए. बिहार में जेडीयू की सरकार होते हुए भी शरद यादव का वहां कभी कोई सीधी दखल नहीं रहा है. जाहिर है पार्टी और राज्य सरकार से उन्हें पहले ही किनारे किया जा चुका है. शरद खुद नीतीश के साथ मिलकर जॉर्ज फर्नांडीस को ऐसे ही किनारे लगा चुके हैं जैसे आज नीतीश उन्हें लगाने की कोशिश करते दिख रहे हैं. ऐसे में शरद यादव को लग सकता है कि जॉर्ज की हालत में पहुंचने से पहले पार्टी से अलग होकर अपनी इज्जत बचायी जा सकती है.
वैचारिक मतभेद
राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन, नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर नीतीश और शरद यादव के बीच मतभेद सामने आ गए हैं. राजद-कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने और बीजेपी से जोड़ने को लेकर भी शरद ने साफ कह दिया है कि वो नीतीश से सहमत नहीं थे. ऐसे में नीतीश कुमार की तरह शरद यादव भी “अंतरआत्मा की आवाज” सुन लें तो किसे हैरत होगी. जब पार्टी में उनके नजरिए के लिए जगह नहीं बची तो वो रह कर भी क्या कर लेंगे.
यादव नेताओं की एकता
नीतीश कुमार के लालू यादव से अलग होने और बीजेपी के साथ जाने के बाद जिस तरह के राजनीतिक हालात बनते दिख रहे हैं उसमें अगर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के सबसे जाने-माने यादव नेता जातीय गोलबंदी के आधार पर आपस में हाथ मिला लें तो बड़ी बात नहीं होगी. शरद यादव भले ही बिहार से राज्य सभा सांसद हों, वो मूलतः मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले हैं. लालू यादव शरद को अपने साथ आने का खुला न्योता दे चुके हैं. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव उनसे बात कर चुके हैं. आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले ये खबर आई थी कि समाजवादी पार्टी और राजद का आपस में विलय हो सकता है. सपा के अखिलेश और मुलायम के खेमे में बंट जाने के बाद ये चर्चा बंद हो गई. लेकिन सभी जानते हैं कि राजनीति संभावनाओं की कला है और इसमें कौन सी संभावना कब जन्म ले ले ये कोई नहीं कह सकता.
विपक्षी एकता का सूत्र
एक संभावना ये भी जताई जा रही है कि शरद यादव गैर-बीजेपी दलों की एका कायम करने में केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं. बीजेपी 2019 के आम चुनाव के लिए कमर कस चुकी है. बीजेपी के खिलाफ गठबंधन करके आम चुनाव लड़ने की जरूरत तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, राजद के लालू यादव, सपा के अखिलेश यादव और खुद शरद यादव बता चुके हैं. ऐसे में शरद अपने भावी राजनीतिक जीवन के लिए नई और सार्थिक भूमिका की तलाश के लिए ये विकल्प चुन लें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. ऐसा हुआ तो शरद नीतीश का साथ छोड़ने में ही भला समझेंगे.
नीतीश से बदला
शरद के पास कोई जमीनी वोट बैंक नहीं है, न ही संगठन है, लेकिन शरद यादव राजधानी में रहने वाले राष्ट्रीय नेता हैं जिसे राष्ट्रीय मीडिया पूरी तवज्जो देता है. प्रोपगैंडा पर टिकी राजनीति के दौर में वो नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी दोनों के खिलाफ माहौल बनाने वाले नेता के तौर पर यूपीए के लिए काम के साबित हो सकते हैं. और इससे वो अपने अपमान का बदला भी ले सकेंगे.
हालांकि ये बाद भी गौर करने वाली है कि पूर्व में बीजेपी-जेडीयूगठबंधन के दौरान शरद जी एनडीए के संयोजक थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बाद जेडीयू एनडीए से अलग हो गई थी. मतलब शरद जी को बीजेपी में मोदी से ऐतराज है अटल-आडवाणी-जोशी से नहीं.