अनीसुर रहमान,न्यूज़ वन इंडिया। आजाद भारत के बाद देश में गरीबी को लेकर विभिन्न सरकारों द्वारा तरह के लुभावने वायदें जरूर किए गए।किसी नें गरीबी हटाओं देश बचाओ तो किसी कहा कि हमारी लडाई गरीबी से है।लेकिन महज इन नारों तक ही गरीबों का कल्याण हुआ ।आजादी के समय भारत की आबादी लगभग 35 करोड़ के करीब थीं।और आज लगभग 125 करोड़ के आसपास है।योजना आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अब भी कुल आबादी के 27% गरीब लोग है।पूर्व पीएमईएसी चेयरमैन सी. रंगराजन के नेतृत्व में गठित एक समिति नें कहा कि देश में हर दस लोगों में से तीन लोग गरीब है।
साल 2011 में वर्ल्ड बैंक नें कहां था कि भारत में गरीबी से निपटने के लिए सरकार के द्वारा उठाए जा रहे कदम प्रयाप्त नहीं है।गरीबी बरकरार रहनें के अनेकों कारण है।बेरोजगारी ,सामाजिक पिछडापन, आधुनिकता का अभाव, भष्ट्राचार ,जनसंख्या में बढोतरी और उसके अनुपात में संसाधनों का विकसित न होना।लोगों में जनजागरूकता और शिक्षा का अभाव भी गरीबी का बडा कारण है।सबसे बडी बात ये कि हमारे यहां एक प्रभावकारी प्रबंधन नहीं होने के कारण गरीबो के लिए बनी योजनाए सफल नहीं हो पा रही है।चाहे वो समाजिक सहायता ,ग्रामोदय योजना, ग्रामीण आवास,सांसद आदर्श ग्राम, रोजगार योजना, बेरोजगारी भत्ता, जन वितरण प्रणाली सहित तमाम योजनाओं में व्यापक स्तर पर आए दिन भष्ट्राचार उजागर होता है।फिर हालत वहीं होते है।
हाल के दिनों में इस आधुनिक भारत गरीबी लोगों के मरने कि बात सामने आ रही है।ये एक विकासशील देश के लिए र्शम कि बात है।गरीबी को जड़ से मिटाने को लेकर किसी भी राजनीतिक दल मे उत्साह नहीं है।केवल और वोट बैंक के लिहाज से उनका और उनसें जुडे योजनाओं को भुनाया जाता रहा है।गरीबी खत्म करने को लेकर कोई इमानदार नहीं है।गरीबी हमारे देश के लिए एक अभिशाप है।इसको लेकर बिना किसी राजनैतिक लाभ हानि के काम करने कि जरूरत है।नहीं तो हम आने वाले दिनों मे भी हालात को काबू नहीं कर सकेंगे।सचमूच यह दौर व्यापक र्शम का दौर है।