दीपकठाकुर,न्यूज़ वन इंडिया। गुजरात और नरेंद्र मोदी का ऐसा नाता है जैसा दूध और पानी जिसको अलग करना ना नामुमकिन सा है।लेकिन राजनीती में कुछ भी कहना और मानना सही नही रहता यहां ऊंठ किस करवट बैठ जाये कहा नही जा सकता।
जैसा कि सभी को पता है कि गुजरात मे नरेंद्र मोदी की ऐसी हवा बही जो दिल्ली की कुर्सी तक ले आई मगर उसके बाद के बदलते समीकरण में गुजरात के चुनाव का होना भाजपा के लिए नाक का सवाल ज़रूर बनता दिखाई दे रहा है।गुजरात का महत्व भाजपा को भी पता है तभी सारा ध्यान उसपर केंद्रित करके सोची समझी रणनीति के तहत काम भी किया जा रहा है।भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दावा कर रहे हैं कि इस बार भी पार्टी का परफार्मेंस उम्मीद से ज़्यादा बेहतर होगा लेकिन जातिगत वोटों पर सेंध लगने का खतरा भी उनको नज़र आ रहा है।
कांग्रेस भी हर सम्भव प्रयास कर रही है गुजरात हासिल जिसके लिए उसने उनसे दोस्ती कर ली जो भाजपा विरोधी है उनका दावा भी यही है कि भाजपा को गुजरात से हटाएंगे क्योंकि उनके साथ जनता है दबे पिछड़े लोग है उनकी आवाज़ को कांग्रेस के साथ मिलकर बुलंद करेंगे वही दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक महीने में तीसरी बार गुजरात दौरे पर है वहां वो कई प्रोजेक्ट का शिलान्यास भी करेंगे मतलब जनता को प्रलोभन देने का प्रयास हर तरफ से बराबर जारी है कोई बातो से तो कोई वादों और दांवों से जनता का मन जीतने का प्रयास करता नजर आ रहा है पर अभी भी सवाल यही है कि क्या कांग्रेसी दांव भाजपा की साख को नेस्तोनाबूत करने में कामयाब होगा या देश के भविष्य को गति प्रदान करने की मोदी की नीतियों को जनता का विश्वास मिलेगा।इंतज़ार सबको है कि ऊंठ किस करवट बैठेगा।