गुजरात दंगों के समय चर्चा में आए पूर्व IPS अधिकारी राहुल शर्मा एक बार फिर से सुर्खियों में हैं. गुजरात में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए यह घोषणा कारते हुए उन्होंने कहा है कि एक जैसी विचारधारा वाले लोगों का यहां स्वागत है. IIT कानपुर से तालीम ले चुके शर्मा 2002 में प्रभावी तरीके से दंगों पर नियंत्रण करने के कारण पहली बार चर्चा में आए थे.
भावनगर का मसीहा
1 मार्च 2002, सौराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी भावनगर में गोधरा दंगों की आंच पहुंच चुकी थी. शाम के करीब चार बजे करीब दो से तीन हजार लोगों की भीड़ काकोर नगर के मदरसे को घेर चुकी थी. मदरसे के चारो तरफ टायर के ढेर लगाकर आग लगा दी गई. आगर की लपटें दो फीट तक ऊपर उछल रही थीं. आग और धुंवा, बच निकलने की कोई सूरत नहीं.
मदरसे के भीतर थे 455 बेगुनाह लड़के जोकि तालीम लेने की गरज से यहां आए हुए थे. ये लोग अपने बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे. कईयों ने डर के मारे कलमा पढ़ना शुरू कर दिया था. बाहर भीड़ पर खून सवार था. लेकिन सभी के सभी 455 लोग जिंदा बच गए. कैसे? इन बच्चों में से एक इस करिश्मे को कुछ ऐसे बयान करता है,
“हम उम्मीद छोड़ चुके थे. हमें अहसास हो चुका था कि हमारी आखरी घड़ी आ चुकी है. मौत के अहसास की वजह से कई लोगों ने कलमा पढ़ना शुरू कर दिया था. इस बीच हमें एसपी राहुल शर्मा दिखाई दिए. वो आग के बीच गाड़ी लेकर हमारी बिल्डिंग की तरफ बढ़ रहे थे. उन्होंने हमें बाहर बुलाया और एक ट्रक में बैठा दिया. दो फीट ऊंची आग की लपटों के बीच उन्होंने खुद ट्रक चला कर हमें वहां से बाहर निकाला. यह खतरनाक काम था लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की. इस तरह हम 455 लोगों की जान बचाई जा सकी. “
यह पहली घटना थी जब राज्य में दंगाइयों को काबू में करने के लिए पुलिस की तरफ से गोली चलाई गई थी. जल्द ही भीड़ तितर-बितर हो गई और स्थिति पर काबू पा लिया गया. शर्मा आउटलुक को दिए इंटरव्यू में बताते हैं-
“भावनगर पुलिस ने इससे पहले कोई दंगा नहीं देखा था. जब मैंने देखा कि जवान गोली चलाने से हिचक रहे हैं तो मैंने बंदूक हाथ में ले ली और पहला फायर किया. इसके बाद धीरे-धीरे वो लोग भी ऐसा करने लगे. हम लोग दंगाइयों को भगाने में कामयाब हुए. हमने उनको फिर से इकट्ठा नहीं होने दिया.”
1 मार्च को जिले भर में हिंसा की 22 वारदात हुई थीं. दो तारीख को यह आंकड़ा गिर कर आधे पर आ गया. 3 तारीख को भावनगर में हिंसा की कोई वारदात रिपोर्ट नहीं हुई. ऐसे में जब भी हिंसा पर काबू पाने के लिए सेना भावनगर पहुंची तो उसके पास करने को कुछ खास नहीं था.
राहुल शर्मा के इस बहादुरी भरे काम के लिए उस समय के केंद्रीय मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने खूब सराहना की. यहां तक की इस घटना का जिक्र आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है. लेकिन गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री गोर्धन झडफिया उनके बारे में अलग राय रखते थे. झडफिया ने सिटी पुलिस के दफ्तर फोन करके निर्देश दिए कि जो लोग पुलिस फायरिंग में घायल हुए हैं उन पर मुकदमें ना कायम किए जाएं. पुलिस ने इस निर्देश को मानने से इंकार कर दिया. शर्मा को इस ‘बेअदबी’ के नतीजे भुगते पड़े और उनका तबादला कर दिया गया.
नई पोस्टिंग के तहत उन्हें डीसीपी (कंट्रोल रूम) के बतौर अहमदाबाद भेज दिया गया. यहां उन्होंने दंगे के आरोपी राजनेताओं के कॉल रिकॉर्ड निकाले और दंगों में राजनेताओं और दंगाइयों के बीच के गठजोड़ की बात सामने आई. 2014 में उन्होंने ऐच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली. फिलहाल वो गुजरात हाईकोर्ट में वकालत कर रहे हैं. ऊना में दलित युवकों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन में उन्हें सक्रिय भूमिका में देखा गया.