दीपक ठाकुर,न्यूज़ वन इंडिया। छठ पर्व की तैयारियों को लेकर जो संस्था और सरकार के दावे होते हैं उन पर वही लोग यकीन कर सकते हैं जो सिर्फ समाचार के माध्यम से जानकारी इकट्ठा करते है वहा की असल हक़ीक़त क्या होती है ये आज हम आपको दिखाते हैं।
छठ पर्व बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश सहित तमाम जगहों पर प्रचलित है लोगों को इस पर्व का इंतज़ार तो रहता ही है साथ ही उनकी आस्था भी इससे जुड़ी होती है जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नहाय खाये से शुरू हुए इस पर्व में आज डूबते सूरज को अर्घ्य दे कर व्रती अपनी पूजा करती हैं जिसमे वो अपने पूरे परिवार के साथ घाट पर जाती है ठीक वैसे ही आज शाम को गोमती घाट का नज़ारा दिखाई दिया श्रधालुओ की भारी भीड़ तो थी पर उनके लिए किये गए इंतज़ाम कुछ भी नही थे।
आलम तो ये था कि लोग या तो ज़मीन पर बैठे या घण्टों वही पर खड़े रहे ताकि उनके परिवार के सभी लोग पूजा में शामिल रहे वहां एक भी मेज़ या कुर्सी तक नही दिखाई दी जिसपर कोई बुज़ुर्ग ही बैठ पाता और तो और बिजली के पोल पर लगे बल्ब भी तब सही किये जाने लगे जब आधे लोग घर वापसी कर चुके थे।
बताइये क्या यही महापर्व की तैयारी होती है क्या इसी पर इतना इतना पैसा खर्च करने का दावा किया जाता है कमाल है सरकारी तंत्र और निजी संस्था जो दावे बड़े बड़े करती है पर काम के नाम पर फजीहत ही कराती है।वैसे इस पर्व को लेकर श्रद्धा भाव से लबरेज़ श्रद्धालुओं को इससे खास फर्क तो नही पड़ा पर गाहे बगाहे लोग सरकार को कोसते ही नज़र आये।