अनिसुर रहमान
हमारे देश मे आरक्षण का इतिहास काफी पुराना है।इसको लेकर समय समय पर बहस भी होती रही है।लेकीन हाल के दिनो मे केन्द्र सरकार ने ये तय किया कि ओ.बी.सी. आरक्षण पर कोई भी फैसला राज्य सरकार नही बल्कि केन्द्र सरकार करेगी।ये निणर्य तब लिया गया जब हरियाणा मे जाट और गुजरात मे पटेल समुदाय के आरक्षण को लेकर आंदोंलन तेज हो गये है।ऐसे मे एक बार फिर आरक्षण पर नये सिरे से बहस शुरू हो गई है।आखिर आरक्षण का आधार क्या होना चाहिए।इसे किसे दिया जाना चाहिए और किसे नही।आरक्षण का आधार जाति बने या फिर समाजिक पिछड़ेपन।कुछ संगठन ये भी मांग कर रहे कि आरक्षण को ही समाप्त कर दिया जाए।ऐसे मे आम इंसान को ये जानना जरुरी है कि आखिर आरक्षण पर इतना घमासान क्यों ।
1882 मे हंटर कमीशन ने पहली बार आरक्षण पर चर्चा की।बाद मे 1932 मे गोलमेज सम्मेलन मे आरक्षण पर काफी चर्चा हुई।इसकी रुप रेखा पर बात हुई।आरक्षण के बहुत बडे हिमायती रहे डा. भीमराव अंबेडकर महार जाती से संबंध रखते थे।उन्हें समाजिक और आर्थिक तौर पर गहरा भेदभाव झेलना पडा़ था।उन्होंने इस व्यवस्था को झेला,समझा और लडा भी।लेकिन हमारे देश मे जाति आधारित भेदभाव लंबे समय से चली आ रही है।जाति के आधार पर उनका तरह तरह से शोषण किया जाता रहा है।भले ही सरकार कानून जरूर बना रही है लेकिन आज भी समाज का एक बडा वर्ग समाजिक आजादी को तरस रहा है।समाजिक एवमं शैक्षणिक रुप से पिछडे वर्गो कि स्थिति को जानने के लिए दिसंबर 1978 मे मोरारजी देसाई कि सरकार ने बिहार के पुर्व मुख्यमंत्री विंदेश्वरी मंडल की अध्यक्षता मे छहः सदस्यों वाली पिछड़ा आयोग का गठन किया।
मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट मे कहा कि पिछडी जातीयां आधे आबादी के लगभग है।आयोग ने अपने तौर तरिके से तमाम जातीयो को जाना और उसका एक खाका तैयार किया।आयोग ने पिछडो के कल्याण के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने के साथ ही कई जनकल्याणकारी नीतियों को अपने रिपोर्ट मे दर्ज किया।लेकीन जैसे ही मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट तैयार कि तब तक मोरारजी देसाई कि सरकार गिर चुकी थी और इंदिरा गांधी कि सरकार पुनः बन गई।इंदिरा सरकार ने मंडल आयोग कि नितियों को लागू नही किया।देश मे आरक्षण को लेकर एक ओर तमाम पिछडे नेता एकजुटता दिखाने लगे थे।मंडल आयोग कि नितियों को लागू कराने को लेकर सरकार पर दबाव बनाने लगे।जार्ज फर्नाडिस ,लालू यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव, मुलायम सिंह, सहित कई नेताओं ने इसके लिए संघर्ष किया।भले ही इन संघर्षों मे इनका कोइ राजनीतिक हित हो।लेकीन जैसे ही केन्द्र मे वी.पी.सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल आयोग कि सिफारिशों को काफी हद तक लागू कर दिया।उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने पिछडो को गोलबंद करने के लिए एक रैली मे कहा कि लोग आने वाली सरकार के बारे मे सोचते है जबकि हम आने वाले पिढी के बारे मे।मंडल आयोग कि नितीया जैसे ही लागू हुइ तो इसका जबरदस्त विरोध भी हुआ ।सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर कर दी गयी।सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग कि सिफारिशों को सही करार दिया।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चंद दिनो बाद ही सरकार ने पिछडो के लिए नौकरीयो मे27%आरक्षण कि सूचना जारी कर दी।
इसी को आधार बनाकर आज कई राजनीतिक पार्टियां जनता को भुनाने का काम कर रही है।भारतीय संविधान मे अनुच्छेद 15 और 16 मे पिछडो के लिए आरक्षण का प्रावधान है।केन्द्र सरकार द्वारा SC जाति को 15% ST को 7.5% OBC को 27% कुल मिलाकर पिछडे तबको को 49.5% आरक्षण मिल रहा है।बाकि के बचे 50.5% समान्य जाति के लिए है।जिसमे sc,st,obc को भी लाभ मिलता है।तमिलनाडु और महाराष्ट्र मे आरक्षण के थोड़े अलग प्रावधान है।आज देश मे आरक्षण के कई आधार बन गये है।जाति, धर्म, शिक्षा और महिला,आज आरक्षण के आधार है।लेकीन मैजुदा दौर मे एक बार फिर देश के अलग अलग हिस्सो मे अलग अलग तरिको से आरक्षण कि मांगे तेज हो गई है।ऐसे मे समाज को ये समझना है कि केवल आरक्षण मिल जाने से हमारा या हमारे समुदाय का भला हो जाएगा तो हमे आरक्षण का लाभ लेने वाले समुदायो को देख लेना चाहिए।आज भी वो समाजिक रूप से पिछडे हूए है ।जाति आधारित आरक्षण के नाम पर वोट बैक कि तरह इस्तेमाल होते रहे है।समाजिक ,आर्थिक,शैक्षणिक रुप से जो पिछड़े है उनको समाज के मुख्यधारा मे लाने के लिए उनके जाति नही उनके पिछडेपन को आधार बनाना पडेगा।आज भी समाज का एक वर्ग समाजिक आजादी कि लडाई लड रहा है।भलें आजादी हमारी सोच और समझ का हिस्सा हो सकता है।लेकिन समाज कि ये लडाई उसी समाज से है।यह हमारे समाजिक और वयक्तिगत दोनो स्तर पर र्शमनाक है।भले सरकार किसी समाज को जाति का आधार बना कर कोइ लाभ देती है तो इसका मतलब यह है कि उस जाति का वह अपने और समाजिक दोनो स्तर पर उनका शोषण कर रही है।किसी भी तरह के पिछडेपन को दुर करने के लिए उस समाज के समाजिक पिछडेपन को आधार बनाया जाना चाहिए।ये बहुत ही गंभीर विषय है इस पर गंभीरता से विचार करने कि आवशयकता है।