लखनऊ, दीपक ठाकुर। लखनऊ का ट्रामा सेंटर जहां मरीज ऐसी स्तिथि में आते है जब उन्हें 24 घण्टे डॉक्टरों की निगरानी की ज़रूरत होती है जिसपर भी उनको वहां पर इंट्री बमुश्किल ही मिल पाती है ऐसी संवेदनशील जगह पर लापरवाही का आलम भी चरम पर है जिसकी कलई तब खुलती है जब वहां कोई कांड होता है।
शनिवार की रात तक़रीबन 7 बजकर 30 मिनट पर ट्रामा सेंटर के दूसरे माले पर आग का प्रकोप दिखाई दिया जिसकी लपटों ने पूरे ट्रामा सेंटर को घेर लिया मरीज अपने तीमारदारों के भरोसे सुरक्षित जगह पर जाने की जद्दोजह करते दिखाई देने लगे दमकल गाड़ी भी तकरीबन 25 मिनट बाद पहुंची इस पूरे माहौल ने ये बता दिया कि ट्रामा सेंटर में आग लगने पर सक्रियता दिखाने का कोई उपाय नही था ना ही अलार्म बजने की स्थिति में था और ना ही पानी की व्यवस्था थी और तो और उस वक़्त सब अपनी जान बचाने के चक्कर मे मरीज़ों को भगवान भरोसे छोड़ भागते दिखाई दिये।
इस अफरा तफरी में तकरीबन 6 मरीज़ अपनी जान गंवा बैठे जो आधिकारिक खबर है असल आंकड़ा इससे ज़्यादा हो सकता है और अभी कितने है जो इस सदमे से अभी तक उबर नही पाये हैं।हालांकि प्रदेश के मुखिया योगीआदित्यनाथ ने तत्काल प्रभाव से मामले की संजीदगी समझते हुए तमाम आलाधिकारियों को मैकाये वारदात पर जाने की हिदायत दी और साथ ही तीन दिन के भीतर अग्निकांड पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कह दिया है।
इतना ही नही दूसरे दिन सुबह यानी रविवार की सुबह योगीआदित्यनाथ खुद ट्रामा सेंटर पहुंचे और मरीज़ों का हाल चाल लिया साथ ही वहां की स्थिति से भी रूबरू हुए।योगीआदित्यनाथ ने इस मामले में जितनी संजीदगी से काम लिया है अगर उतना संजीदा ट्रामा सेंटर प्रशासन भी रहता तो शायद ऐसी अफरातफरी ना होती और ना ही मरीज़ वक़्त से पहले अंतिम सांस लेते।
अब सवाल ये उठता है कि इतने बड़े और ज़िम्मेदार अस्पताल में गैर जिम्मेदाराना इंतज़ाम क्यों किया गया है मरीज़ों की जान से खिलवाड़ करने का जिम्मेदार कौन है इसका जवाब ट्रामा सेंटर को देना ही पड़ेगा क्योंकि यहां बात उन जानो के जाने की है जो अपनी जान बचाने की उम्मीद लेकर यहां आते हैं।