दीपकठाकुर, न्यूज़ वन इंडिया। नवरात्र के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। मां के इस रूप के प्रगट होने की बड़ी ही अद्भुत कथा। माना जाता है कि देवी के इसी स्वरूप ने महिषासुर का मर्दन किया था। देवीभाग्वत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा गृहस्थों और विवाह के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही फलदायी है।
जानिए क्यों नाम पड़ा देवी कात्यायनी
कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के नाम पर ही देवी का नाम कात्यायनी हुआ। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। यह दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी कहलाती हैं।
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी के दर्शन को भक्तों की भारी भीड़ वैसे तो सभी मंदिरों में एक समान ही दिखी पर जो नज़ारा माँ पूर्वी देवी मंदिर में दिखा उसका कोई जवाब ही नही था क्योंकि यहां माँ के दर्शन तो साक्षात हो ही रहे थे साथ ही उनको मनाने और मन वांछित फल पाने के लिए महिलाओं की तरफ से भक्तिमय भजनों का भी दौर जारी था मानो माँ से उनका सीधा संवाद चल रहा हो।
माँ की भेंट ऐसी थी कि सुनने वाला भी गुनगुनाने पर मजबूर हो जाये उसपर से मंदिर परिसर की फूलों से हुई साज सज्जा भक्ति रस बढ़ाने का काम करती नज़र आ रही थी।करीब डेढ़ घण्टे तक माँ और भक्त आमने सामने रहे और कर्णप्रिय भेंटे माँ को समर्पितं करते रहे जिसके बाद माँ की भव्य आरती हुई जिसमे सभी भक्त शामिल हुए और माँ के जयकारे लगाते रहे।
मंदिर में आयोजित नवरात्रि पर्व के आयोजन अध्यक्ष प्रमोद कुमार शुक्ला ने बताया कि आज भी कुछ भक्तों ने अपने श्रद्धाभाव के साथ माँ का श्रंगार करवाया है क्योंकि माँ ने उनकी मुराद पूरी की है।उनका कहना था कि पूर्वी देवी मंदिर में पिछले कई वर्षों से नवरात्रि का पर्व इसी हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमे भक्तों की भारी भीड़ भी रहती है।
आज माँ कात्यायनी के दर्शन को आये भक्तों ने भी यही कहा कि माँ से सच्चे दिल से जो मांगा वो पाया है यही कारण है कि माँ के दर्शन को हर स्थिति में यहां आना हो ही जाता है।उन्होंने कहा कि माँ से पापियों और पाप नाश करने को अर्ज़ी दी है जो ज़रूरी भी है।