कानपुर. लोकसभा चुनाव 2014 से लेकर नगर निकाय 2017 के बीच बसपा को करारी हार उठानी पड़ी। इसी दौरान खुद बसपा सुप्रीमों ने कई बसपाईयों को पार्टी से बाहर कर दिया तो कुछ स्वेच्छा से पार्टी छोड़कर चले गए। लेकिन मिशन 2019 फतह करने के लिए हाथी एक्शन में आ गया है और इसी के चलते पार्टी छोड़कर गए पुराने नेताओं की घर वापसी शुरू हो गई है। पार्टी के रणनीतिकार जातिगत और जमीनी नेताओं को वापस लाने के लिए अंदरखाने लगे हुए हैं। इसी कड़ी के तहत पूर्व जिलाध्यक्ष रामकृष्ण भास्कर और पूर्व महासचिव मनोज दिवाकर को पार्टी में शामिल किया गया है।
पुराने कैडर व नेताओं के लिए खुले दरवाजे
2007 में यूपी की जनता ने बसपा सुप्रीमो मायावती को सूबे की कमान सौंपी थी। मायावती के शासनकाल के दौरान कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वह जेल गए। खुद मायावती ने ऐसे नेताओं की सूची बना, एक-एक कर पार्टी से बाहर कर दिया था। लेकिन 2012 के चुनाव में बसपा चुनाव हार गई और इसी का फायदा भाजपा ने 2014 में उठा लिया। नरेंद्र मोदी की आगवाई में लगा गया लोकसभा चुनाव में मायावती का बेसवोट खिसक कर कमल के साथ चला गया और प्रदेश में हाथी का खाता तक नहीं खुल पाया। बसपा सुप्रीमो हार के बाद भी झुकने के बजाए अन्य कद्दावर नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया। जिसका परिणाम 2017 विधानसभा में उन्हें उठाना पड़ा। अब बसपा अपने पुराने कैडर के साथ 2019 का चुनाव लड़ने की रणनीति के तहत काम कर रही है। पार्टी छोड़कर गए, या निकाले गए बसपा नेताओं की घर वापसी के लिए मंडल कोआर्डिनेटरों को लगाया गया है। जोनल कोआर्डिनेटर नौशाल ने बताया कि जो भी पार्टी के विचारधारा से प्रभावित हो वह बसपा में आ सकता है।
साथ लेकर चलने की रणनीति पर काम
पिछले दिनों पार्टी से निष्कासित पूर्व जिलाध्यक्ष रामकृष्ण भास्कर और पूर्व महासचिव मनोज दिवाकर को पार्टी में शामिल किया गया। कई और नेता जल्द ही शामिल होंगे। इन सबके बीच पूर्व जिलाध्यक्षों की भूमिका को सक्रिय बनाया जाएगा। अभी अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, महासचिव आदि पदों से हटने के बाद नेता खामोश हो जाते हैं। वे बैठकों में भी शामिल नहीं होते। इसकी वजह है उन्हें पार्टी की ओर से महत्व न दिया जाना, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सभी पूर्व अध्यक्षों व अन्य पूर्व पदाधिकारियों की बैठक कर उन्हें सक्रिय भूमिका अदा करने के लिए कहा जाएगा। उन्हें जिला प्रभारी की जिम्मेदारी दी जा सकती है। पार्टी नेतृत्व लोकसभा चुनाव में किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। हर हाल में जीत सुनिश्चित करने के लिए ही सभी को साथ लेकर चलने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
सतीश मिश्रा की टीम बनाएगी रणनीति
2017 विधानसभा चुनाव के वक्त बसपा में सिर्फ नसीमुद्दीन की चलती थी। कई बड़े नेताओं को हसिए पर लाकर छोड़ दिया गया था। जिस दलित-ब्राम्हण फार्मूले के दम पर 2007 का चुनाव बसपा ने जीता, वह 2012 में दलित-मुस्लिम में सिमट गया। जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा। मायावती और नसीमुद्दीन ने 50 से ज्यादा सिटिंग विधायकों के टिकट काट दिए, जिसके चलते वह बागी हो गए और दूसरे दलों से टिकट लेकर चुनाव के मैदान में उतर गए। पर 2019 का चुनाव सतीश मिश्रा की टीम के बल पर बसपा लड़ने जा रही है। पार्टी से बाहर किए गए ब्राम्हण नेताओं को पार्टी में वापस लाया गया है। कानपुर मंडल की कमान अंटू मिश्रा को दी जाएगी तो फतेहपुर, हमीरपुर, बांदा में आदित्य पांडेय पार्टी के लिए प्रचार करेंगे।
गठबंधन पर मायावती का निर्णय सर्वमान्य
पूर्व विधायक आदित्य पांडेय ने बताया कि 2019 को लोकसभा चुनाव बसपा पूरी ताकत के साथ लड़ने जा रही है। पार्टी प्रदेश की अस्सी में से पचास से ज्यादा सीटें जीतेगी। पांडेय ने कहा कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन का निर्णय पार्टी सुप्रीमो मायावती करेंगी। आदित्य पांडेय ने बताया कि सिर्फ एक नेता के चलते 2012 में हमारा टिकट काटा गया। हमने किसी भी बड़े दल में न जाकर दलित पिछड़ों के लिए संघर्ष करते रहे। जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र में हमने गुंडे, बदमाशों, राशन माफियाओं को खदेड़ दिया था। बसपा सरकार के दौरान सच में सबका विकास हुआ, पर भाजपा की सरकार में सिर्फ कुछ लोगों का हित हो रहा है। आज प्रदेश में अपराध चरम पर है। एक जाति विशेष के लोग सरकारी आहदों में बैठाए जा रहे हैं। पर जनता सब जान चुकी है। 2019 के 2022 में इन्हें हरा कर बसपा को फिर से लाएगी।