लखनऊ,दीपक ठाकुर। उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में अखिलेश यादव से कई गलतियां हुई जो परिणाम के रूप में सबके सामने भी आई उन्ही में से सत्ता जाने की एक अहम वजह जो मानी गई वो थी कांग्रेस के साथ उनका दोस्ताना जिसकी चर्चा जोर शोर से हुई यहां तक कि दोनों ने स्लोगन ही बना लिया था कि यूपी को ये साथ पसंद है।
हालांकि हार के बाद भी अखिलेश यादव ने अपनी दोस्ती को तरजीह दी और कहा कि ये दोस्ताना आगे भी जारी रहेगा पर इनकी कहानी में नया मोड़ लेकर राजबब्बर साहब आ गए और उन्होंने प्रदेश अश्य्क्ष चुने जाने के बाद पहले बयान में ही कह दिया कि कांग्रेस को किसी के साथ कि ज़रूरत नही है जरूरमंद पार्टी तो समाजवादी पार्टी है।
अब बताइये कांग्रेस पार्टी से समाजवादी पार्टी को क्या मिला एक तो कांग्रेस उनके हार का कारण बनी दूसरा दोस्ती की ज़रूरत का ठीकरा भी सपा के सर मढ दिया।उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव लोकसभा चुनाव के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि इस चुनाव के माध्यम से उन पार्टियों को ये पता चलेगा कि जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में कुछ इजाफा हुआ है या जनता उनको अभी भूले रहना ही चाहती है यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश की कमान राज बब्बर को सौंप दी ये सोच कर के उनके द्वारा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खिसकती ज़मीन को कोई मोकाम मिलेगा।
लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने तो सीधे सपा को ही कमज़ोर पार्टी करार दे कर एक तो दोस्ती पर संकट के बादल ला ढ़िये दूसरा लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश के महागठबंधन वाली बात को भी नकार दिया मतलब गठबंधन बना नही फूट पहले ही पड़ने लगी।
खैर ये राजनीति है इसमें हर पल नए समीकरण बनते और बिगड़ते हैं अब क्या पता के निकाय चुनाव के ज़रिए सभी पार्टी खुद को परखने के लिए अलग अलग मैदान में उतरने की बात कर रही हो।वैसे राजनीति में किसी बात को पुख्ता तब तक नही मानना चाहिए जब तक लक्ष्य का समय ना निकल जाए 2019 में तो अभी समय है पर निकाय चुनाव ये तय कर देंगे कि गठबंधन का फैसला उनके लिए सही रहेगा या खुद पर भरोसा।