लखनऊ,दीपक ठाकुर:NOI।अगर हम नसीमुद्दीन सिद्दीकी और मायावती की प्रेस कांफ्रेंस को गौर से देखे सुने तो दोनों ही एक खास व्यक्ति का जिक्र करते नज़र आ रहे थे और वो खास कोई और नही बल्कि बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा है जाहिर तौर पर उनके पार्टी में आने के बाद नसीमुद्दीन ही नही
बल्कि कई पुराने नेताओ को बहन जी द्वारा तवज्जो कम दी जाने लगी थी और यही वजह है कि धीरे धीरे सबने पार्टी से किनारा करना ही बेहतर समझा कोई बाइज़्ज़त पार्टी छोड़ कर गया तो कोई बेआबरू हो कर पर सभी जाने वालों में एक बात समान रही वो ये कि सबने बहन जी पर पैसों को लेकर खूब आरोप लगाए।
नसीम कह कर जिसे बार बार मायावती संबोधित कर रही थी वो नसीमुद्दीन ही थे ये नाम शायद उनको तब दिया गया होगा जब वो उनके खास सिपाहसालार थे और एक तबके का वोट बैंक भी।राजनीति में पार्टियां जाति गत आधार को बड़ा तवज्जो देती है और उसी आधार पर पार्टी में एक चेहरा ऐसा रखती हैं जिससे उस समुदाय का वोट उनके पाले में आ सके यही वजह थी कि मुस्लिम वोटों की ज़िम्मेवारी नसीमुद्दीन को उठानी पड़ती थी या यूं कहें कि वो पार्टी में मुसलमानों का चेहरा था जिन्होंने पार्टी को वोट भी दिलवाए।
पर सतीश चंद्र मिश्रा का बहन जी जिस तरह से गुणगान कर रही थी उससे तो यही लगता है कि अब या ऐसा कहा जाए कि उनका पार्टी में शामिल होने के बाद पार्टी की नीति में अहम रोल होता है और उन्ही के मार्गदर्शन का बहन जी अनुसरण भी करती है।
तो जहां एक ओर नसीमुद्दीन सतीश मिश्रा की आलोचना कर रहे थे तो वहीं बहन जी उनकी तारीफों के पुल बांध रही थी इससे ये साफ जाहिर होता है कि पार्टी में ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा नसीमुद्दीन से काफी आगे चल रहे है और पार्टी मुखिया के पसंदीदा भी है तो शायद यहां नसीमुद्दीन सिद्दीकी की एक बात तो सही लग रही है कि सतीश चंद्र मिश्रा के आने से उनका कद पार्टी में कम हो गया था पर उनकी भी कोई मजबूरी होगी जो अपमान सह कर भी पार्टी नही छोड़ी थी जब निकाले गए तब भड़ास भी निकल रही है।
वैसे यहां नसीमुद्दीन या किसी नेता को इस बात की चिंता करने की ज़रूरत नही कि उसे किसी की वजह से बाहर निकाला गया क्योंकि सत्ता की कुर्सी की तरह पार्टी में लोगों का भी आना जाना लाज़मी होता है जो काम का होता है टिकता है जिससे काम निकल गया निकाल दिया जाता है कोई बात नही पार्टियां और भी हैं साहब।