लखनऊ,दीपक ठाकुर। सत्ता की ललक और ऊँचा पद बस यही चाहिए इसी की तो लड़ाई है जीत मिली तो ठीक नहीं तो यहाँ तो हम वैसे भी मौसेरे भाई है। कुछ ऐसा ही हाल है नेताओ का राजनीती में जिस तरह का घटनाक्रम हो रहा है उससे तो यही लगता है कि यहाँ लड़ाई सिर्फ कुर्सी पाने की है इसी की जद्दोजहद में सभी एक दूसरे पर ऊँगली उठाते हैं ना मिले कुर्सी तो दल बदल कर गले लग जाते है।
धन्य है नेता जो चुनाव में अपने ही बिरादरी पर वार करते नहीं थकते और लग जाये मौका तो चरण छूने में ही भलाई समझते है। जब जब जहाँ जहाँ भी चुनाव का वक़्त आता है तो राजनैतिक गलियारे से खबरों की बरसात सी होने लगती है कल तक जो दूसरे दल के लोगों को घास तक डालना नहीं पसंद करते थे वही लोग उनकी पोजिशन का आकलन कर उनके आंगन की शोभा बन जाते है फिर उसी दल को गरियाते हैं जहाँ से कूद कर आते हैं। इसके बाद यहाँ चलता है टिकट के बटवारे में हिस्सेदारी का जोर खुद भी मांगते हैं साथ ही चेला चपाटी को भी दिलाते हैं ना मिले तो बागी तेवर दिखाते हैं।
फिर जब आते हैं चुनावी मैदान में तो सीना ठोक कर पुराने साथियों पर तरह तरह के इलज़ाम लगाते हैं और ये भूल जाते हैं कि आज जिसको उल्टा सीधा कह रहे हैं पहले उसी का महिमामंडन करते नहीं थकते थे पर क्या करें वो भी राजनीती है ही ऐसी आज किसी का सितारा बुलंद है तो कल किसी और का हो सकता है तो नेताओ में ये गुण ना हो तो वो सफल कैसे हो पाएंगे आये हैं अपना जीवन संवारने बिना कुछ लिए कैसे जाएंगे।
नेतागिरी करना कोई आसान काम नहीं है यहां तो सब कुछ दांव पर रखना वक़्त पड़े तो …. को भी बाप कहना का रिवाज भी है। चीख चीख कर गाली देना कभी कभी तो निजी हमला कर देना ये इनकी पुरानी आदत हो गई है पर दिल मिलाते भी देर नहीं लगाते सत्ता की जो चाहत हो गई है।
धन्य हैं नेता धन्य है नेताओं के गुण कुछ इनसे भी सीखा जाए तो जीवन जीने में हो जायेंगे हम निपुण। हम ये सोचते है कि हमारा नेता कितना सच्चा और कितना अच्छा है जो काम नहीं करते उनको कितना कोसता है यही सोच कर हम अपना नेता चुनते हैं पर जब उनकी बारी आती तो वो ही हमको धुनते हैं। जैसी गत पहले थी सब वैसा ही रहता है और कुछ बदले ना बदले इनका चोला बदलता है। कुर्सी पाकर तो ये भी बदले बदले नज़र आते हैं जिनको गरिया कर ये कुर्सी पाई उन जैसे ही नज़र आते हैं।
राजनीती से लो प्रेरणा दिल से कभी नहीं तकरार करो जब मौका मिले पाँव पकड़ लो सिंहासन पर राज करो।