दीपक ठाकुर,न्यूज़ वन इंडिया। भारत देश सबसे बड़ी रेलवे प्रणाली तरक्की करने के दावे तो खूब कर रही है पर उसका वास्तविक स्वरुप कैसा है ये वो हर भारतीय भली भांति जनता है जो इसका उपयोग करता है।हमारी भारतीय रेल दो बातों को लेकर हमेशा सुर्खी बटोरती है पहली तो अजीबोगरीब हादसों के लिए और दूसरा अपनी लेटलतीफी के लिए।हादसों पर तो सियासत भी जमकर होती है यहां तक कि रेल मंत्री तक बदल दिए जाते है पर लेटलतीफी की ज़िम्मेवारी कोई नही लेता और ना ही इसके लिए किसी की कुर्सी जाती है किसी का अगर कुछ जाता है तो वो है यात्रा करने वाले का सुकून और उसका टिकट पर लगा पैसा जिससे सरकार को कोई लेनादेना नही रहता।
वैसे तो हम सभी जानते हैं कि कोहरे के समय गाड़ियों का लेट होना लाजमी है क्योंकि डिजिटल इंडिया का बखान करने वाली हमारी सरकार के पास ऐसी कोई व्यवस्था नही है जो इससे निपटा जा सके,पर बिना कोहरे के उसको महसूस कर के गाड़ी घण्टो लेट कर देना ये हमारी भारतीय रेल की स्पेशियलिटी बन गई है।हमारी बात पे यकीन ना हो तो या तो आप रेलवे स्टेशन पर जा कर समय सारणी देख ले और या फिर किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क करें जो इसका उपयोग हाल ही में कर के आया हो।
हमने भी मंगलवार की शाम एक यात्रा करने का प्रोग्राम बनाया था लिहाजा हमको भी अपनी ट्रेन पर सफर करने का इंतज़ार एक दिन पहले से ही था नेट पे गाड़ी पर जब सर्च किया तो पता चला कि उसे जहां से चलना है वो वही से अपने निर्धारित समय से 8 घण्टे देरी से चलेगी खैर ये जानकर हम भी थोड़ा निश्चिंत हो गए के अभी काफी समय है आराम से निकला जाएगा।पर ताज्जुब तो इस बात का रहा के जिस गाड़ी के लिए हमको दोपहर में एक बजे ही घर से निकलना था उस गाड़ी ने यहां आते आते रात के एक बजे का वक़्त दिखाना शुरू कर दिया यानी कि 12 घण्टे लेट।
हम फिर भी रात एक बजे घर से निकल गए ये सोच कर की कैंसिल तो हुई नही है तो आएगी ज़रूर और नेट भी बता रहा है 12 घण्टे लेट है तो ये सब सोच कर हम आ गए स्टेशन।पर यहां आकर देखा कि गाड़ी संख्या 12876 के आने का वक़्त अभी भी तय नही हुआ है और ना ही इसकी कोई एनाउंसमेंट हो रही है जबकि घड़ी में बज रहे हैं रात के सवा दो।ऐसा ही करते करते सर्द रात में परिवार के साथ हम हर एक पल का इंतज़ार कर रहे थे साथ ही सरकार को कोस भी रहे थे कि यही है डिजिटल इंडिया में भारतीय रेल का स्वरूप।खैर रात तक़रीबन 3 बजे आवाज़ आई कि गाड़ी आने वाली है तैयार हो जाइए तो हम भी खड़े हो गए सामन अपने अपने हाथों में थाम कर और पहले ही उस जगह पर पहुंचे जहां कोच लगने की बात बताई जा रही थी मगर एक बार फिर भारतीय रेल ने अपनी पीठ थपथपाने का काम किया और वहां नही आई जहां आना था तो हमने दौड़ लगा कर अपना स्थान पकड़ा और किसी तरह बैठ गए।
हम बैठ तो गए पर सोचते रहे क्या है भारतीय रेल की मजबूरी जो कोई सफर आसान नही बनाने देती और क्यों इसको दुरुस्त करने में हमारी सरकार नाकाम है यात्रियों से पैसा बढाकर लेते हैं पर सुविधा के नाम पर ठेंगा क्यों दिखाते है बताइये क्यों और कबतक।