इरफ़ान शाहिद,न्यूज़ वन इंडिया। राजनीती में परिवार की भूमिका बहुत अहम होती है क्योंकि परिवार से कोई एक भी शख्स इसमें सफल हो गया तो समझ लीजिए कि पूरे परिवार ने बैतरणी पार कर ली। ऐसा हम क्यों कह रहे हैं ज़रा इस पर भी ध्यान केंद्रित कीजिये।आपको ध्यान होगा कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने सपा पर आरोप लगाया था कि समाजवादी पार्टी में परिवारवाद को बढ़ावा दिया जाता है या ऐसा कहें कि इनका पूरा परिवार किसी ना किसी रूप से राजनीति में है वो भी ऊंचे मकाम पर है।फिर भाजपा बोली के हमारी पार्टी परिवारवाद के खिलाफ है और हम इसका विरोध करते हैं।पर वास्तव में हकीक़त क्या है आप ये भी जान लीजिए कि इस बार के निकाय चुनाव में किसने परिवारवाद को तरजीह दी है।
वैसे तो उत्तर प्रदेश सरकार ने सख्त लहजे में ये कहा था कि पार्टी से जुड़ा कोई भी नेता अपने परिवार के लिए ना ही टिकट मांगेगा और ना ही किसी के लिए इसकी सिफारिश करेगा।मगर क्या ऐसा हुआ मेरे ख्याल से नही क्योंकि आंकड़े तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं।
इसमें पहला नाम आता है मोहनलालगंज सीट से सांसद कौशल किशोर का जो भाजपा से सांसद चुने गए हैं और इस बार के निकाय चुनाव में उनके परिवार के तीन सदस्यों को भाजपा ने पार्षदी का टिकट भी दे दिया है।कौशल किशोर जी के भांजे अशोक रावत को बालागंज वार्ड संख्या 15 से भाजपा का टिकट मिला है तो वही सांसद जी के भाई की पत्नी को कन्हैया माधोपुर से और खुद सांसद जी के भाई साहब जय प्रकाश को उन्होंने शहीद भगत सिंह वार्ड संख्या 7 से भाजपा का टिकट दिलवाने में सफलता हासिल की है।
ये कोई एक ही नाम नही है जो परिवार की पैरोकारी करने में व्यस्त है बल्कि ऐसे कई नाम इस निकाय चुनाव में हैं जो परिवार वाद को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं।फिर ऐसे में दुसरो को इसके लिए क्यों दोषी माना जाता है ये बात समझ से परे है।