लखनऊ, दीपक ठाकुर। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में जो त्रासदी हुई उससे अभी तक हर शख्स ग़मज़दा है ऑक्सीजन की कमी से हुई मासूमो की मौत का गुस्सा जन जन के भीतर भरा हुआ है हालांकि सरकार इस मामले में उस मुद्दे को छू तक नही जिसको मोडिया या वहां के लोग कारण बता रहे हैं पर सरकार एक भयानक बीमारी का चोला उढ़ा कर अपनी नाकामी छिपाने का एक असफल प्रयास करती नज़र आ रही है।
गोरखपुर में जो हुआ वो ना काबिलेबर्दाश्त इसलिए है क्योंकि अस्पताल की घोर लापरवाही और उनका गैरज़िम्मेदाराना रवैया लोगों को अखर रहा है वही उसी विभाग के एक डॉक्टर साहब की उस वक़्त की जिंदादिली और कर्तव्यनिष्ठा ने लोगों का दिल जीत लिया था हर अखबार और चेनल पर वही डाक्टर और उनके प्रयास की बाते दिखाई जा रही थी।मगर हीरो बन रहे डॉक्टर कफील को उस वक़्त मुजरिम बना दिया गया जब ये बात सामने लाई गई के डॉक्टर साहब निजी प्रेक्टिस भी करते है।अब यहां सवाल ये है कि क्या ये एकलौते ऐसे डॉक्टर है जो सरकारी डॉक्टर होने के बावजूद निजी प्रेक्टिस करते हैं या इसे बहाना बना कर सरकारी तंत्र कुछ और कहानी जड़ने की कोशिश कर रहा है।
जहाँ तक हमारी सोच है कि प्रदेश में या देश भर में निजी प्रेक्टिस कर रहे ऐसे तमाम डॉक्टर है जो सरकारी डॉक्टर भी है क्या ये बात सरकार तक नही पहुंची या सिर्फ डॉ कफील को इसलिए दागी बनाया जा रहा है क्योंकि उनके कार्य की सराहना और सरकार की फ़जीहत हुई गोरखपुर त्रासदी को लेकर।
अगर सिर्फ इसी बात को लेकर डॉक्टर कफील पर एक्शन लिया गया है तो मेरे हिसाब से ये बात किसी के पल्ले नही पड़ रही सरकार को एक्शन तो उन डॉक्टरों पर लेना चाहिए था जो हाथ बांधे बच्चो के मौत की गिनती गिन रहे थे ना के डॉक्टर कफील पर जिन्होंने आक्सीजन की व्यवस्था के लिये खुद को समर्पित कर दिया था जो सबको दिखाई भी दिया यहां एक बार फिर सरकारी तंत्र पर शुभा इसलिए होता है कि जो बात सभी अखबार चेनल चीख चीख के कह रही है उसपर तो आप जांच के बाद एक्शन की बात करते हैं और जो बात किसी को पता तक नही थी उसपर आपने फौरन एक्शन ले लिया।काश आपकी तेजी सही दिशा में होती तो आपकी ऐसी किरकिरी ना होती वैसे डॉ कफील ने उस वक़्त जो भूमिका अदा की उसके लिए वो बधाई के पात्र हैं।लेकिन अगर उन पर लगे आरोप सही पाय गये तो ये संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पार करने जैसा होगा क्योंकि उनके हीरो बनने की वजह उनकी सच्ची कर्तव्य निष्ठा ही बनी थी।