दीपक ठाकुर। बिहार की सत्ता से बेदखल किये गए लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी महारैली के ब्रैंड एम्बेसडर की भूमिका में नज़र आये।तेजस्वी को इस बात का मलाल था कि भाजपा के कुचक्र और दोस्त की बेवफाई उनकी कुर्सी खा गई तो वही उत्तर प्रदेश के पूर्व मुखिया अखिलेश यादव भी गांधी मैदान से भाजपा को आइना दिखाने की जुगत लगाने पहुंचे थे उन्होंने प्रधानमंत्री के नोट बंदी वाले वाक्ये को जनता के बीच जोर शोर से उछाला और पीएम से पूछा कि नोटबंदी से किसे लाभ हुआ ये सरकार बताये उनका निशाना भाजपा सरकार पर इस लिए भी था क्योंकि उनका मानना है कि भाजपा जनता को बरगला कर सत्ता पे काबिज़ हुई है और वो सबका साथ सबका विकास भूल कर किसी खास वर्ग के लिए काम कर रही है।
बिहार सरकार की पार्टी के एक नुमाइंदे भी इस रैली में पहुंचे थे जी हम बात कर रहे हैं फिलहाल जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव की जिनकी पार्टी तो सरकार में भाजपा के साथ काम कर रही है पर वो व्यक्तिगत रूप से इन दोनों से बराबर की दूरी बनाए हुए हैं।जेडीयू और भाजपा गठबंधन का विरोध करने वाले शरद यादव ने पार्टी तो नही छोड़ी पर संकेत दे ढ़िये के वो भाजपा के खिलाफ थे और हैं उन्होंने कहा कि उनको महारैली में आने से बहुतों ने रोका मगर वो भाजपा को रोकने के लिए यहां आए हैं।
लालू यादव की इस महारैली में भीड़ तो काफी जुटी बड़े बड़े दिग्गज भी जमा हुए सबने भाजपा को खूब खरी खोटी भी सुनाई और ये संकेत भी दिया कि भाजपा को भगाने के लिए पूरा विपक्ष एक जुट है मगर सवाल ये उठता है कि मायावती, सोनिया और राहुल जैसे अपनी पार्टी के दिग्गज वहां नही पहुंचे तो क्या वाकई वो भी महारैली में उतने जी जान से रहेंगे जितने लालू अखिलेश शरद यादव और ममता दिखाई दे रहे हैं।
वैसे ऐसी आशंका से भी इंकार नही किया जा सकता कि महारैली में जुटी भीड़ लाई गई या खुद आई और दूसरी ये के क्या लालू के साथ कांग्रेस और बसपा मंच साझा करने में सहज महसूस कर पाएंगे या ये महारैली भी महागठबंशन जैसे ही सभी को हैरत में छोड़ कर वास्तविक स्वरूप में आने से पहले ही दम तोड़ देगी।