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Tuesday, October 15, 2024

​पिछली बार जब भड़के थे मनमोहन, मनाने पहुंच गए थे अटल

मनमोहन सिंह को राजनीति की पेचीदगियों से वाकिफ करने में अटल बिहारी वाजपेयी का खास योगदान है.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय भले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को जाता है, लेकिन उन्हें राजनीति की पेचीदगियों से वाकिफ करने में अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान माना जाता है.

नरसिंह राव कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह को तब विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से काफी सियासी प्रहार झेलने पड़ते थे. एक वक्त तो नौबत ऐसी आ गई कि मनमोहन सिंह ने नाराज़ होकर वित्त मंत्री पद से इस्तीफे तक का इरादा कर लिया था.
हालांकि तब नरसिंह राव वाजपेयी के पास पहुंचे और उन्हें नाराज़ मनमोहन से मिलकर उन्हें समझाने का आग्रह किया. अटल बिहारी वाजपेयी भी मनमोहन सिंह के पास गए और उन्हें समझाया कि इन आलोचना को खुद पर न लें, वह तो बस विपक्षी नेता होने के नाते सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं.
उस दिन के बाद से मनमोहन सिंह सत्ता या विपक्ष में रहते हुए ऐसे राजनीतिक आक्षेपों का डटकर सामना करते हैं और हमेशा एक सुलझे हुए राजनेता सा संयम बनाए रखा.
प्रधानमंत्री पद पर अपने एक दशक के कार्यकाल के दौरान डॉ. सिंह साथी सांसदों की सलाह और आलोचनाओं को बेहद धीर-गंभीर अंदाज में सुना, लेकिन बोला बेहद कम.
बस साल 2009 के आम चुनावों के वक्त ही एक बार ऐसा देखने को मिला जब मनमोहन सिंह ने आलोचनाओं का जवाब दिया. तब पीएम पद के लिए बीजेपी उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी चुनावी अभियान के दौरान बार-बार उन्हें ‘कमजोर प्रधानमंत्री’ बता रहे थे. इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘करगिल युद्ध की तपिश में ‘लौह पुरुष’ तुरंत ही पिघल गए.’ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह मंत्री रह चुके आडवाणी को बीजेपी तब लौह पुरुष के नाम से प्रचारित कर रही थी.
बेहद कम बोलने के लिए आलोचनाओं के शिकार रहे मनमोहन सिंह का संसद में शायराना अंदाज भी देखने को मिला. वर्ष 2013 में अध्यक्षीय अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में यूपीए-2 की नीतियों पर सवाल करते हुए बशीर बद्र का शेर पढ़ा था-
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता.

इसका जवाब देने खड़े हुए मनमोहन सिंह ने अपने भाषण के अंत में मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर से सुषमा को यूं जवाब दिया था-

हमें हैं उनसे वफा की उम्मीद, जिन्हें नहीं मालूम वफा क्या है.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली बेहद बुरी हार के बाद भी डॉ. सिंह संसद में नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते दिखते हैं. हालांकि ऐसे मौके कम ही हुए, लेकिन मनमोहन सिंह ने जब भी संसद में सवाल उठाए, सभी राजनीतिक दलों ने उसे ध्यान से सुना.

मनमोहन सिंह ने जब नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से लिए गए नोटबंदी के फैसले की राज्यसभा में आलोचना की, तब पूरा सदन और देश का एक बड़ा हिस्सा उन्हें बेहद ध्यान से सुन रहा था.

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