लखनऊ, दीपक ठाकुर। कहने को हमारा देश तरक्की की ओर अग्रसर है हम हर क्षेत्र में सक्षम हैं ऐसा हम दावा करते हैं पर फिर भी कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब हम खुदको सबसे बेबस महसूस करते हैं।पिछले कई दिनों से हम सब देख सुन रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सहित कई जगहों पर बाढ़ ने कहर बरपा रखा है कितने परिवार इस बाढ़ की चपेट में या तो खत्म हो गए या कही छिप कर जीवन से संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं।
ऐसा नही के पहली बार ही बाढ़ का प्रकोप मानव जीवन पर ग्रहण बनकर आया है लगभग हर वर्ष भारत के कई हिस्सों में बाढ़ का आना एक स्वभाविक प्रक्रिया है जिससे निपटने की ज़िम्मेवारी हमारी सरकार की होती है।पर पिछली बार की तबाही से सरकार कोई सबक लेकर क्या उसे आगे के लिए अच्छी योजना बनाती है ऐसा कहना ठीक नही होगा क्योंकि अगर बनाती तो आज बाढ़ पीड़ितों की जाने ना जाती और उन्हें दो वक्त की रोटी की उम्मीद में टकटकी ला लगानी पड़ती होती।
सरकार का एक काम हमेशा सबसे पहले होता है वो ये के सरकार हवाई सर्वेक्षण कर बाढ़ के हालात का जायज़ा जरूर ले लेती है पर शायद आसमान से ज़मीन पर झांकने से वो उस सच्चाई से कोसो दूर रह जाती है जो बाढ़ पीड़ितों पर बीत रही होती है।राज्य सरकार के हवाई दौरे पर केंद्र सरकार बड़ी संजीदगी दिखाती है और फौरन मोटा पैकेज देने की घोषणा कर देती है।
पर सवाल ये उठता है क्या राज्य सरकार का हवाई सर्वेक्षण और केंद्र सरकार का मोटा पैकेज बाढ़ पीड़ितों की समस्या सुलझाने में सफल हो भी पाता है या नही तो जवाब है नही उनकी समस्या पर सरकारी मरहम ज़रा भी नही लग पाता अगर लग पाता होता तो चैनलों पर ऐसी तस्वीरें ना आती जिन्हें देख कर दिल पसीज जाता है।
होना ये चाहिए कि सरकार को कोई ठोस योजना बना कर बाढ़ से निपटने के कारगर उपाय करना चाहिए जब हम जानते हैं कि बाढ़ से क्या नुकसान हो सकता है तो समय रहते उसपर काम क्यों नही किया जा सकता हम बात तो करते हैं डिजिटल होने की पर भारत मे अभी भी ऐसी ऐसी समस्या है जिसे दूर करना डिजिटल होने से ज़्यादा ज़रूरी है।