पटना ।भाजपा, जदयू और राजद के साथ ही इस बार कांग्रेस भी राज्यसभा की दौड़ में शामिल है। यदि कांग्रेस, पार्टी के बागी नेताओं को साधने में सफल रही तो तकरीबन 16 साल बाद बिहार से राज्यसभा में कांग्रेस का भी एक सदस्य होगा। अंतिम बार 2002 में बिहार कोटे से आरके धवन राज्यसभा पहुंचे थे।
वैसे तो चुनाव में अभी थोड़ा वक्त है, लेकिन राज्यसभा के भावी उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस में चर्चा जोर पकडऩे लगी है।
भावी उम्मीदवार के रूप में बिहार प्रभारी डॉ. सीपी जोशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है, लेकिन पार्टी के अंदर मचा घमासान इस बात का संकेत है कि लंबे समय के बाद बिहार कोटे से एक व्यक्ति को राज्यसभा में पहुंचाना कांग्रेस के लिए मामूली बात नहीं होगी।
दरअसल, बिहार में कांग्रेस अक्टूबर के बाद से लगातार आंतरिक झगड़े से जूझ रही है। पार्टी का एक खेमा वर्तमान प्रभारी अध्यक्ष कौकब कादरी के साथ है, तो दूसरा खेमा पूर्व अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री रहे डॉ. अशोक चौधरी के साथ। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि डॉ. चौधरी को दर्जन भर विधायकों का समर्थन प्राप्त है।
अगर वे राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने पर आ जाते हैं, तो कांग्रेस की राज्यसभा की दावेदारी का खतरे में पडऩा तय है। हालांकि प्रभारी अध्यक्ष कादरी इस बात से इन्कार करते हैं। उनका मानना है कि डॉ. चौधरी ने कभी भी पार्टी से अलग होने की बात नहीं की। जब आलाकमान का निर्देश होगा तो वे निश्चित रूप से उसका पालन करेंगे।
मसला यह है कि पार्टी में जिन दो नामों पर चर्चा है उनके साथ पूर्व अध्यक्ष के संबंध अच्छे नहीं। डॉ. सीपी जोशी को लेकर पूर्व अध्यक्ष डॉ. चौधरी का रवैया काफी तल्ख है। चौधरी का मानना है कि डॉ. जोशी की साजिश की वजह से ही उन्हें अलोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष पद से हटाया गया। अखिलेश सिंह के साथ भी पूर्व अध्यक्ष के संबंध कोई खास मधुर नहीं।
कांग्रेस के 27 विधायक हैं। सहयोगी राजद के पास कुल 79 विधायकों की ताकत है। 70 विधायकों के समर्थन से राजद राज्यसभा की दो सीटों पर अपने प्रत्याशी जीता लेगा। उसके नौ विधायक कांग्रेस के पक्ष में वोट करते हैं तो कांग्रेस की राह भी आसान हो जाएगी। शर्त यही है कि बागी खेमे के विधायक अपनी पार्टी उम्मीदवार के साथ बने रहें।