में शुक्रगुजार हूँ उन लोगों का जिन्होंने मुझे जिंदा छोड़ दिया:- अकरम हबीब
शरद मिश्रा”शरद”
लखीमपुर खीरी:NOI- खीरी जनपद के हार्डवेयर स्टोर चलाने वाले 35 वर्षीय अकरम हबीब को कासगंज में गणतंत्र दिवस के दिन भड़की हिंसा के दिन अपनी एक आंख गवानी पड़ी।उनकी बेटी कासगंज हिंसा के ठीक अगले दिन इस दुनिया मे आयी।
अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में अपनी चोट सहला रहे हबीब कहते हैं कि वह और उनकी बेगम अभी तक अपनी बच्ची का नाम तक नहीं सोच सके हैं। हबीब गणतंत्र दिवस के दिन अपनी ससुराल, कासगंज आए थे क्योंकि उसकी पत्नी अनम (27) की अगले दिन डिलीवरी होनी थी। हिंसा के बाद, उन्होंने अपनी कार में गांव के रास्ते निकलने की सोची ताकि भीड़ से सामना न हो।
हबीब ने बताया, मैंने कुछ लोगों से रास्ता पूछा। उन्होंने मेरी दाढ़ी देखी और मुझे मुसलमान जानकार पत्थरों और लाठियों से बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। मेरे सिर पर बंदूक रख दी। उन्होंने मेरी जान केवल इसलिए बख्श दी क्योंकि उन्हें मेरी गर्भवती बीवी और मुझपर तरस आ गया। वह (अनम) इस दौरान चिल्लाती रही।” हबीब ने दावा किया कि पुलिस ने मदद नहीं की और उन्हें घायल होने के बावजूद अपनी पत्नी को खुद कार चलाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा।
हबीब ने कहा, ”मैंने कार की खिड़की के बाहर सिर निकाला और गाड़ी चलाने लगा। (जल रही संपत्तियों से उठता धुआं दृश्यता कम कर रहा था।) मुझे बड़ी मुश्किल से कुछ दिख रहा था। उस समय, मैं बस अपनी पत्नी को सही-सलामत बाहर निकाल ले जाना चाहता था।
हबीब से उनकी बेटी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”मैं खुश हूं कि मैं उसका चेहरा देख सका और कुछ मायने नहीं रखता। मैं उनके लिए भी बद्दुआ नहीं देता जिन्होंने मुझपर हमला किया।