महाशिवरात्री को मनाने के कारण
देवों के देव भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता है. खासकर महाशिवरात्रि पर मंदिरों में आस्था का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है.
तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्योहार महाशिवरात्रि है. कहते हैं महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर पृथ्वी पर उन जगहों पर होते हैं, जहां-जहां उनके शिवलिंग हैं. यह पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है.
क्यों मनाते हैं शिवरात्रि?
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह हुआ था और इसी दिन पहला शिवलिंग प्रकट हुआ था. साथ ही महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था, जो समुद्र मंथन के समय बाहर आया था.
इस साल यह शुभ व्रत मंगलवार और बुधवार की मध्यरात्रि को मनाया जा रहा है. इस दिन व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, बुजुर्ग करते हैं.
इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर और शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व “ऊं नम: शिवाय” का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं. व्रत के दूसरे दिन यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणा दिया जाता है.
व्रत की महिमा
इस व्रत के विषय में मान्यता है कि जो व्रत करता करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है. इस व्रत को लगातार 14 वर्षों तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका समापन करना चाहिए.
व्रत का संकल्प
व्रत का संकल्प सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए करना चाहिए. महाशिवरात्रि के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड़ दी जाती है.
व्रत की सामग्री
उपवास की पूजन सामग्री में जिन वस्तुओं को प्रयोग किया जाता हैं, उसमें पंचामृत (गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद), सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल.