नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। मां का यह रूप बेहद ही सुंदर, मोहक और अलौकिक है। चंद्र के समान सुंदर मां के इस रूप से दिव्य सुगंध और दिव्य ध्वनियों का आभास होता है। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है, यह वीरता और शक्ति का प्रतिक हैं।
माँ के दिव्य दर्शन के लिए मां पूर्वीदेवी मंदिर में सुबह से जो तैयारियां की गई थी उसकी छठा शाम को जगमगाती रोशनी में दिखाई दी जिसे देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा।मंदिर की महिला सदस्यों ने मां को अपनी भेंट सुनाकर मनाने का प्रयास किया तो वही बाकी भक्तगण तालियों के साथ मां के जयकारे लगाते नज़र आये।
आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रमोद कुमार शुक्ला ने बताया कि पूर्वी देवी मंदिर से भक्तों के विशेष लगाव को देखते हुए यहां उनके बैठने माँ के दर्शन करने की उचित व्यवाथा की जाती है उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता यही रहती है कि जो भी मंदिर में आये वो बिना प्रासाद और माँ के दर्शन के ना जा पाए उन्होंने बताया कि नवरात्रि में हर दिन कोई ना कोई भक्त अपनी श्रद्धा से माँ का श्रंगार कराता है और माँ से मन वांछित फल पाता है।
माँ पूर्वी देवी मंदिर की विशेषता भी यही है कि यहां से कोई खाली हाथ नही जाता है।खास तौर पर नवरात्रि पर्व पर यहां माता के हर स्वरूप के साक्षात दर्शन होते हैं ऐसा हम नही मंदिर में आये तमाम भक्तगण कह रहे हैं।कल भी माँ का दरबार सजेगा जयकारे गूंजेंगे भक्ति भाव का रस भी बरसेगा।