गुजरात। पिछले साल 11 जुलाई को गुजरात के उना में कथित गाय की हत्या के विरोध में गौरक्षकों ने चार दलित युवाओं की बर्बरतापूर्वक पिटाई की थी। वह युवक एक मरी गाय की खाल उतार रहे थे। उस समय की रिपोर्ट में आया था कि गाय को उन दलित युवाओं ने नहीं बल्कि शेर ने मारा था, और युवाओं की पिटाई में गुजरात पुलिस की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई थी। उसके बाद उसी गांव में दो गाय मरे पड़े थे जिन्हें जानवर खा रहे थे लेकिन दलितों ने उसे साफ करने पर कोई ध्यान नहीं दिया।
उना कांड के बाद देशभर में दलितों ने आंदोलन किया था। दलित आत्म-जागरूगता में उना कांड की घटना ने एक अहम भूमिका निभाई। उना कांड ने दलित सक्रियता को एक नई यात्रा पर ले जाने के लिए अवसर प्रदान किया।
गुजरात में सैकड़ों गावों में दलित ‘चमार’ और ‘जाटव’ उपजाति के नाम से जाने जाते हैं जो परंपरागत रूप से चमड़े के कारोबार में लगे हुए हैं। उन्होंने अब प्रण कर लिया है कि वे गाय की खाल उतारने का काम तब तक नहीं करेंगे जबतक उन्हें देश की अन्य जातियों की तरह सम्मान नहीं मिलने लगेगा।
अब जबकि भाजपा सरकार गुजरात के ओडीएफ लक्ष्य को पूरा करने में जुटी है तो सवाल उठता है कि यह तब कैसे संभव होगा जब राज्य में जगह-जगह जानवरों के मृत शव पड़े सड़ रहे हैं। मानसून की शुरुआत के साथ ही राज्य में गंदगी फैलने की वजह से रोगों मं बढ़ोतरी होगी। तो मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान का क्या होगा?
इस बीच गुजरात की भाजपा सरकार ने गाय की हत्या पर नया कानून बनाया है। गुजरात विधानसभा में गौ हत्या संशोधन बिल पास किया गया है जिसके तहत गाय की हत्या करने वालों को अब उम्रकैद की सज़ा होगी। इसके साथ ही गाय की तस्करी करने वालों के लिए भी 10 साल की सज़ा का प्रावधान है।
भाजपा शायद यह भूल गई है कि दलित समुदाय की आजीविका शवों की सफाई पर निर्भर है, और पीएम मोदी भी आजकर दलितों को लुभाने में लगे हुए हैं। जाहिर सी बात है जब शव नहीं तो दलितों को काम नहीं मिलेगा।