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Wednesday, January 15, 2025

​मुस्लिम महिलाओं की मोदी सरकार को खुली चुनौती, कहा- सरकार बदल सकती है, शरीयत कानून नहीं

गोरखपुर। तालीम, दीनी व दुनियावी फराइज, निकाह, तीन तलाक, दहेज सहित तमाम सामाजिक मुद्दों को लेकर नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां रविवार को मुस्लिम महिलाओं का सम्मेलन आयोजित हुआ। जिसे नाम दिया गया था बज़्म-ए-ख्वातीन बनाम इस्लाह-ए-मआशरा कांफ्रेंस । 
सम्मेलन में महिलाओं ने कहा कि शरीअत हमारी जान, शरीअत हमारी शान है। इसे हम खत्म नहीं होने देंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी। शरीयत अल्लाह व रसूल का दिया हुआ कानून हैं। इसे बदलने का हक किसी को नहीं हैं। 

इस सम्मेलन में मुख्य वक्ता मऊ की मशहूर मुस्लिम धर्मगुरु महजबीं अख्तरी ने निकाह और तलाक का हक पर कहा कि जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं, बहुत से अलग-अलग मिज़ाजों के लोगों के सामने बहुत तरह की समस्याएं आती हैं। जब पति-पत्नी का साथ रहना मुमकिन न हो और दोनों तरफ़ के लोगों के समझाने के बाद भी वे साथ रहने के लिए तैयार न हों तो फिर समाज के लिए एक सेफ़्टी वाल्व की तरह है तलाक़। तलाक़ का आदर्श तरीक़ा कुरआन में है। 

इस्लाम में निकाह के लिये जो हुक्म दिये हैं उनका उद्देश्य समाज में रिश्ते-नाते वजूद में लाना है। शादी के बाद पति-पत्नी में निभती नहीं है तो इस्लामिक तलाक का विकल्प खुला हुआ है, ताकि जिंदगी बोझ न बने, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि तलाक देने के जो तरीके शरीयत में बताये गये हैं यदि तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं तो आखिरी फैसला तलाक का है। तलाक के बाद दूसरी शादी को इस्लाम मान्यता देता है। शरीयत के किसी भी नियम का इंकार करने से पुरुष हो या स्त्री इस्लाम से खारिज हो जाते हैं। 

अति विशिष्ट वक्ता घोषी मऊ से आयीं इस्लामिक स्कॉलर साफिया खातून ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल में मुसलमानों की मांग पर 1937 में शरीयत एक्ट पास किया गया था जिसके अनुसार निकाह, तलाक, खुला, परवरिश का हक, विरासत आदि से संबंधित मामलों में अगर दोनों पक्ष मुसलमान हो तो शरीयत-ए-मुहम्मदी के अनुसार उनका फैसला होगा। चाहे उनके रीति-रिवाज और परंपरा कुछ भी हो, अर्थात यह की इस्लामी शरीयत के कानून को आम रीति-रिवाजों पर प्राथमिकता प्राप्त होगी। भारतीय संविधान के अध्याय 3 में अकीदा धर्म और अंतरात्मा की आजादी और मौलिक अधिकार के तहत स्वीकार किया गया है । मुसलमानों को इस वक्त शिक्षित करने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता के बाद से भारत के मुसलमानों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह समान नागरिक सहिंता के विचार को अस्वीकार करते हैं । शरीयत के उल्लंघन को खत्म करने के लिए मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं के बारे में शिक्षित और मुस्लिम समाज में सुधार करने की जरुरत हैं। 

अति विशिष्ट वक्ता मऊ से आयीं आलिमा ताबिंदा खानम ने कहा कि जब भारतीय जनता इस्लामिक कानून की सुंदरता के बारे में अच्छी तरह से शिक्षित होगी तो यह समान नागरिक सहिंता की दुर्भावनापूर्ण धारणा से धोखा नहीं खायेगी। जिन मजहबों में तलाक नहीं हैं उनमें औरतों को कत्ल कर दिया जाता हैं।जिंदगी अजाब बनी रहती हैं।आज औरतों की हमदर्दी के नाम पर कुछ इस्लाम दुश्मन ताकतें ऐसा कानून बनाना चाहती हैं जिससे तलाक का वजूद मिट जायें और मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी करने का मौका मिल जायें। यह लोग औरतों के हमदर्द नहीं बल्कि औरतों की सबसे बड़े दुश्मन हैं। 
विशिष्ट वक्ता गोरखपुर की इस्लामिक विद्वान नूर अफशां ने कहा कि शरीयत के उल्लघंन का मूल कारण मुसलमानों में बड़े पैमाने पर अज्ञानता और इस्लामी मानदंडों के प्रति गंभीर अप्रतिबद्धता है। इस्लाम ने सबसे पहले महिलाओं को अधिकार दिए हैं। इस्लाम से हटकर जो भी कानून बनाया जाएगा वह महिलाओं के खिलाफ ही बनाया जाएगा। इस्लाम ने महिलाओं को निकाह के वक्त रजामंदी का अधिकार दिया है। पिता की विरासत में बेटी का और शौहर की संपत्ति में पत्नी को भी हक दिया है। 

अध्यक्षता करते हुए गोरखपुर की आलिमा शबाना खातून शम्सी ने कहा कि मजहबे इस्लाम को इंसान ने बड़ी तेजी के साथ कबूल किया। आज अगर अहले इस्लाम, इस्लाम के उसूल व कानून की पाबंदी करके सही मायने में मुसलमान बन जायें तो दुनिया में जो लोग अभी इस्लाम की लज्जत से नावाकिफ हैं वह सब इस्लाम के दामन से वाबस्ता हो कर मुसलमान बन जायेंगे और बहुत जल्द दुनिया में सिर्फ एक ही मजहब होगा और वह इस्लाम होगा। 
संचालन मऊ की आलिमा फरहत जहां ने किया। इस दौरान सूफिया खातून, सैयदुन्निशा, फरीदा खातून, तबस्सुम खातून, हसरतुननिशा, मुजीबुन निशा, रुबीना खातून, मदीना खातून आदि मौजूद रही।

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