वह बहुत अनुभवी रेल चालक था। तेज निगाह से वह दूर तक देख पाने में सक्षम था जिसकी वजह से उसने कई दुर्घनाएँ होने से बचाई। लम्बी दूरी की ट्रेन में बतौर मुख्य चालक उसने मुल्क के सौंदर्य को नजदीक से देखा था। धर्म से वह मुसलमान था। जब भी ट्रेन पहाड़ों से गुजरती वह मुल्क का सौंदर्य बने रहने की कामना करता। जब भी ट्रेन नदी पार करती तो वह खुद नदी हो जाता। सहायक चालक और अन्य स्टॉफ सब हिन्दू ही थे। गंगा नदी पार करते वक्त एक बार उसने सहायक चालक का हाथ पकड़ लिया था जब वह बचा हुआ खाना गंगा में फ़ेंकने लगा था। उसने कहा था कि श्रद्धा के स्थान पर जूठन नही फेंकते दोस्त। हिन्दू सहायक चालक तभी से उसे बहुत मानने लगा था।
बहुत बार मुसलमान चालक को जब् पटरी पर गाय दिखाई देती तो वह स्पीड बिल्कुल धीमी कर देता औऱ व्हिसिल बजा बजा कर गाय को साइड कर देता। हालांकि सभी जानवरों से उसे प्रेम था।
एक बार तो पूरा गायों का झुंड ही पटरी पर आ गया था। मुसलमान चालक ने इमरजेंसी ब्रेक लगा कर सभी गायों को बचा लिया था जबकि ट्रेन के दुर्घटना ग्रस्त होने की पूरी संभावना थी।
कभी ट्रेन की पटरी कोई उखाड़ जाता तो ना जाने उसे कैसे पता चलता कि आगे खतरा है। वह ट्रेन की गति धीमी कर देता। ट्रेन की पटरी उखाड़ने वालो को भला बुरा कहता कि जो मज़लूम को मारते हैं उनका कोई ईमान नही। दहशत का कोई धर्म नही।
मुसलमान चालक का परिवार गांव में रहता था। मवेशी उनके घर में रहते ही थे।
एक दिन उसे खबर मिली कि उसके भाई को कुछ लोगो ने गौ तस्करी के शक में बहुत पीटा है। घर पहुंचा तो मालूम हुआ कि भाई की मौत हो चुकी है।
बहुत दिनों बाद वह निढाल सा ड्यूटी पर लौटा। सहायक हिन्दू चालक को बहुत बुरा लग रहा था कि भीड़ को धर्म दिखता है आदमी नही। ट्रेन अपनी गति से दौड़ी जा रही थी। मुसलमान चालक आंखों में आँसू लिए कहीं वीराने मे देख रहा था कि पटरी पर उसे गाय दिखी। उसने सहायक चालक से कहा कि गति धीमी करो। सहायक चालक ग्लानि से भरा हुआ था। बोला, उड़ा दो बॉस। ले लो बदला आज। मुसलमान चालक बोला, मै दहशत गर्द नही हु। मुसलमान हु। ब्रेक लगा जल्दी।
ट्रेन रुक चुकी थी। मुसलमान चालक पहली बार ट्रेन से नीचे उतर कर गाय को हांक रहा था और सहायक चालक दूर खड़ा अश्रु पूरित आंखों से मुसलमान चालक को निहार रहा था।