कोलकाता : योगी आदित्यनाथ में भविष्य या 2024 के नरेंद्र मोदी ढूंढ़ने वालों अपना दिल थाम लें यह महज एक मुखौटा हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ अपने से कोई सरकारी फैसला नहीं ले सकते, यहां तक कि अपने क्षेत्र से भी जुड़े राजनीतिक निर्णय तक. मुख्यमंत्री पद का शपथ लेते वक़्त ही इनके साथ दो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा को बिठा दिया गया था. हालांकि सरकार में बड़े फैसले लेने का अधिकार इन्हें भी नहीं है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की सरकार योगी आदित्यनाथ नहीं बल्कि कोई और ही चला रहा है, कौन है वो ?
आखिर कौन है वो
अमित शाह के साथ सुनील बंसल का फाइल फोटो
यूपी की सरकार व राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषकों की मानें तो उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी में ट्रांसफर पोस्टिंग का सारा काम पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र के हाथ में है और वरिष्ठ अधिकारी सीधा उन्हें ही रिपोर्टिंग करते हैं. ऐसे में कई अधिकारियो को मुख्यमंत्री योगी चाहकर भी हटा नही पाए, न पसन्दीदा अधिकारी तैनात कर पाए. दरअसल, सुलखान सिंह के रिटायर होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओपीसिंह को यूपी का नया डीजीपी बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा, जिसे जानबूझकर एक महीना तक केंद्र सरकार ने लटका कर रखा, एक महीना तक यूपी पुलिस बिना डीजीपी के रही.
राजनीतिक फैसले नहीं ले पाए
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने जिले का मेयर प्रत्याशी चुनने तक का भी अधिकार नही है. निकाय चुनाव में गोरखपुर की सीट पर धर्मेन्द्र सिंह को मेयर का टिकट दिलाना चाहते थे पर मुख्यमंत्री की इच्छा को दरकिनार करते हुए उनके क्षेत्र में मेयर का टिकट सुनील बंसल ने अन्य को दिया और उसे जीताने की जिम्मेदारी भी योगी पर थोप दी, हालांकि वह मामूली अंतर से वो जीत पाए. इसी महीने बीजेपी में पौने एक दर्जन राज्यसभा टिकट का बंटवारा हुआ है. यशवन्त सिंह को राज्यसभा टिकट दिए जाने का आश्वासन देकर भी टिकट नहीं दिया गया. राजा भैया के बेहद ख़ास रहे एमएलसी यशवन्त सिंह ने ही योगी आदित्यनाथ के लिए विधानपरिषद से इस्तीफा दिया था. जिस सीट पर योगी उपचुनाव लड़कर सदन में पहुंचे थे. दरअसल, उस समय यशवन्त सिंह को राज्यसभा टिकट दिए जाने का आश्वासन दिया गया था. इसी भरोसे राजा भैया ने फूलपुर लोकसभा में जमकर बीजेपी के लिए प्रचार भी करवाया लेकिन यशवन्त सिंह का टिकट काटकर हरनाथ सिंह यादव को थमा दिया गया.
कहानी गोरखपुर सीट की
योगी नहीं चाहते थे कि उपेन्द्रदत्त शुक्ला उम्मीदवार बनें लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व नहीं माना। दरअसल, योगी ने कई नाम सुझाए जिनमें उनके मठ से जुड़े एक ब्राह्मण सहयोगी, निकाय चुनाव में ठुकराए गए. धर्मेन्द्र सिंह और अंत में मठ से जुड़े दलित जाति में जन्मे योगी कमलनाथ का नाम सुझाया था. योगी के धुर विरोधी रहे केंद्रीय मंत्री शिवप्रताप शुक्ल के विश्वस्त उपेन्द्र शुक्ल को उम्मीदवार बना दिया गया और जीताने की जिम्मेदारी योगी पर सौंप दी गयी.