लख़नऊ, दीपक ठाकुर। वट सावित्री के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस साल संयोग ऐसा बना है कि इसी दिन शनि जयंती व स्नान, दान अमावस्या भी पड़ रहे हैं।वट सावित्री व्रत में महिलाएं बरगद की परिक्रमा कर पूजा करती हैं।कहते हैं कि गुरुवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक होता है।ऐसा माना जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस ले लिया था। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान कर लेती हैं और सुहाग से जुड़ा हर श्रृंगार करती हैं।मान्यता के अनुसार इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने के बाद ही सुहागन को जल ग्रहण करना चाहिए।परन्तु जिन के घरों में इस दिन को लेकर जैसी परमपरा चली आ रही होती है वो उसी का अनुसरण कर अपनी पूजा और व्रत सम्पन्न करती है कुछ महिलाएं आज के पूरे दिन फलाहार पर ही रहती हैं तो कुछ सिर्फ जल ही ग्रहण करती हैं।
वट का मतलब होता है बरदग का पेड बरगद एक विशाल पेड़ होता है।इसमें कई जटाएं निकली होती हैं।इस व्रत में वट का बहुत महत्व है।कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति को यमराज से वापस पाया था।सावित्री को देवी का रूप माना जाता है और हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है। मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शिव उपरी भाग में रहते हैं। यही वजह है कि यह माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।
इस व्रत से जुड़े पूजन को लेकर भी कई तरह की मान्यताएं हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल अर्पण करती हैं और हल्दी का तिलक, सिंदूर और चंदन का लेप लगाती हैं।इस व्रत के पूजन के दौरान पेड़ को फल-फूल अर्पित करने की भी मान्यता है।
भीषण गर्मी के बावजूद इस व्रत को करने के लिए सुहागन महिलाओं के उत्साह में कोई कमी नही आती सभी विधिवघ पूरी तैयारी के साथ वट व्रक्ष से अपनी पूजा सम्पन्न करती है।