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Tuesday, February 18, 2025

​वाह रे उत्तर प्रदेश पुलिस बड़ा छाये रहते हो सुर्ख़ियों में..

लखनऊ,दीपक ठाकुर।अक्सर आपने कई पुलिस बूथों पर लिखा देखा होगा आपकी सहायता को तत्पर आपकी मित्र पुलिस। हालांकि यहाँ ये नहीं लिखा रहता की इसका सच्चाई से कोई लेनादेना नहीं है। ऐसा इसलिए कहने की ज़रूरत पड़ी क्योंकि आमजनता के लिए पुलिस कितनी तत्पर है और कितना उनसे मित्रता पूर्ण व्यवहार करती है ये आम जनता भली भांति जानती है। 
वैसे तो पुलिस जनता की सेवा और सुरक्षा के लिए होती है पर वर्दी पर स्टार बढ़ाने के चक्कर में वो सिर्फ विशिष्ठ लोगों के इशारे पर ही काम करती नज़र आती है पुलिस का आम जनता में जितना खौफ है उतना ही अपराधियों को भरोसा की उनके आका की इज़ाज़त के बिना कोई पुलिस उनको छू तक नहीं सकती।यहाँ आका का मतलब आप समझ ही गए होंगे कई बड़े मामलों में पुलिसिया कार्यवाही को देखते हुए।

अब बात करते है अपराधियों के बुलंद हौसलों की। अपराध तो वैसे हर राज्य में होता ही है पर यूपी इसमें थोड़ा सा आगे ही रहता है कारण फिर एक बार वही रहती है कि हमारी पुलिस उसपर अंकुश लगाने में नाकाम साबित होती है अभी कुछ दिन पहले ही राजधानी लखनऊ में बेख़ोफ़ बदमाशों ने व्यापारी श्रवण साहू की गोली मार कर हत्या कर दी फिर आराम से चलते बने वही दूसरी तरह चौक गोलदरवाज़े में व्यापारी से बंदूक की नोक पर लूटपाट की घटना को अंजाम दिया और फिर टहलते हुए निकल लिए यहाँ गनीमत ये रही की जान बच गई व्यापारी की। यहाँ देखने वाली बात ये है कि दोनों घटनाएं भीड़भाड़ वाले एरिये में और सरे शाम हुई वो भी पुलिस की नाक के नीचे। तो ये क्या है कहाँ है खाकी का खौफ क्या खाकी का खौफ सिर्फ साधारण लोगों तक सीमित रह गया है क्या हमारी मित्र पुलिस किसी ख़ास वर्ग से ही मित्रता निभाने में यकीन रखने लगी है या उनपर खुद की नौकरी को ले कर कोई दुविधा रहती है कि ऐसा किया तो कहीं उस पर ना पंगा हो जाये ऐसे कई सवाल है जो सामान्य लोगों के ज़हन में आते हैं जिसका जवाब कौन और कब देगा ये अभी तक पता नहीं चल पाया है।

अब तो जैसे चलन सा हो गया है कि यूपी पुलिस सुर्खी में तो रहेगी पर किसी अच्छे काम को अंजाम देने के लिए नही बल्कि अपनी नाकामी को लेकर ये नाकामी और भयावह रुप तब ले लेती है जब मामला हाई प्रोफाइल होता है उन मामलों पर पुलिस को ना निगलते बनता है ना उगलते इसी वजह से आनन् फानन में मामला रफा दफा करने की कवायद शुरू हो जाती है जो पीड़ित पक्ष के लिए काफी घातक ही रहती है पीड़ित पक्ष पर ही ये दबाव बनाया जाता है कि सहो पर चुप रहो इसी में तुम्हारी भलाई है। ऐसा ऐसे ही नहीं कह रहे आजकल टीवी अखबार सब जगह यही सब ख़बरें ज़्यादा प्रसारित हो रही है।
इन तमाम बातों से तो यही लगता है कि आमजनता की सुविधा और सुरक्षा के लिए योजनाओं का तामझाम भले बढ़ गया हो पर उनका लाभ पीड़ित तक पहुँचता है इसमें संदेह है जिसे दूर करने में हमारी पुलिस और प्रशासन को गंभीरता के साथ कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ऐसा कदम जिससे आम जनता खुद को सुरक्षित महसूस कर सके और अपराधी पुलिस के नाम से काँप उठे।

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