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Thursday, November 7, 2024

​वोट पाने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे पर जीत गए तो नज़र नहीं आएंगे!

लखनऊ, दीपक ठाकुर। सधी बात पर जनता के बीच जाना और उनसे हाथ जोड़कर ये निवेदन करना की आप अपना कीमती वोट हमको दें ये सब गुज़रे ज़माने की बातें लगने लगी हैं क्योंकि चुनाव की जो मौजूदा तस्वीर जनता के सामने आ रही है उसमें निवेदन का आभाव तो रहता ही है साथ ही उनमे भय व्याप्त कर वा दूसरे नेताओं को अपशब्द बोलकर वोट अपील की जाती है । ऐसा हम नहीं कह रहे ऐसा इन नेताओं के क्रियाकलापों से जग जाहिर हो रहा है कि उनकी असल लड़ाई कुर्सी पाने की है जनता की हमदर्दी से उनका कोई लेना देना नहीं है।
हम अगर उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव की बात करें तो यहाँ सभी पार्टियां एक दूसरे पर छीटाकशी करती ही नज़र आती है जन सभा तो ताबड़तोड़ होती हैं पर उनमे जनता की बात ना कहकर आरोप प्रत्यारोप की बरसात होती नज़र आती है।

कोई नेता प्रधान मंत्री पर अभद्र भाषा बोल कर पब्लिक वोट पाने की राजनीती करता नज़र आता है तो कोई उनपर व्यक्तिगत हमला करने से बाज़ नही आ रहा है।

दूसरी तरफ हमारे प्रधान मंत्री भी अपनी पार्टी के प्रचार में कई जगह ऐसी बातें बोल जाते हैं जो शायद कुर्सी के लिए जायज़ हो पर उनसे सुनने में अच्छी नहीं लगती। कहा जाए तो जनता के बीच जा कर सभी दलों के नेता जो बातें कर रहे हैं उसमें जनता से जुडी बाते तो नदारद रहती हैं पर दूसरे दलों की फजीहत में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। तमाम ऐसे उदाहरण जनता के सामने हमारे नेताओं ने पेश कर दिए हैं जिससे जनता खुद ये नहीं समझ पा रही की ये चुनाव उनके हित के लिए कराये जाते हैं या नेताओं में रबड़ी खाने की होड़ मचाने के लिए।

इन चुनावों में सिर्फ एक ही बात ऐसी है जो सभी दल में समान नज़र आती है और वो ये की चुनाव में उनकी ही पार्टी जीत रही है बाकी सब की बत्ती गुल हो रही है बस इसी बात को सब एक सुर में करते हैं और कहते हैं कि वो जनता का मूड देख कर ऐसा कह रहे हैं।

अब आप ही बताइये जिस चुनाव में आप जनता के बीच गए वहां जनता से जुडी बात तक नहीं की आपने सिर्फ दूसरों की निंदा हंसी मजाक में ही भाषण निपटा दिया उसी पे तालियां भी बटोर ली तो आपने उसमे जनता का मूड कैसे भांप लिया अरे आपको उन सब से फुर्सत ही कब मिली। जनता के मन में क्या है ये बात जनता मन में ही रखती है वो जानती है कि कुर्सी की लड़ाई किस स्तर पर जा चुकी है कि यहाँ उनकी सुनने वाला कोई नहीं सब कुर्सी के लिए एक दूसरे को कोसते हैं फिर उन्ही के साथ कुर्सी भी साझा कर लेते है।अब वोट करना जनता का अधिकार है जिसको मिलता है वो करता है और जिसको करता है तो यही सोच कर करता है कि उसका वोट पाने वाला नेता अगर उसके बीच आया तो उसका कल्याण करेगा पर क्या ऐसा वास्तव में होता है ये एक बड़ा सवाल है जो जनता नेता से पूछ रही पर नेता अभी तक इसका जवाब देने में असमर्थ ही नज़र आ रहे हैं उनके हर सवालों को गोलमोल घुमा रहे हैं।।।

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