नई दिल्ली (एजेंसी)। दशकों पुराने कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुना दिया है। इस फैसले के तहत अब तक तमिलनाडु को मिलने वाले 192 टीएमसी पानी घटकर 177.25 टीएमसी हो गया है यानि फैसले से कर्नाटक फायदे में है वहीं केरल व पांडिचेरी के जल आवंटन में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
राज्य चुनावों को लेकर तैयारियों में मशगूल कर्नाटक और गुटों के अंदरुनी कलह के कारण तमिलनाडु सरकार परेशानी में है। बता दें कि कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (CWDT) के अंतिम आदेश के खिलाफ कर्नाटक और तमिलनाडु द्वारा दायर याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला आज सुनाया है।
सितंबर 2017 में फैसला सुरक्षित
5 फरवरी 2007 को CWDT के फैसले से दोनों राज्य नाराज और असहमत थे। 20 सितंबर 2017 को लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों वाली बेंच ने कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल द्वारा CWDT के 2007 के फैसले के खिलाफ दर्ज करायी गई अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
साढ़े सात सौ किमी लंबी है ये नदी
कर्नाटक के कोडागु जिले से निकलने वाली कावेरी नदी तमिलनाडु में बहते हुए पूमपुहार में बंगाल की खाड़ी में मिलती है। तीन भारतीय राज्यों- तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के अलावा पांडिचेरी कावेरी बेसिन में है। लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
कर्नाटक, तमिलनाडु के अलावा विवाद में कूदे ये भी…
नदी के बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल है। दोनों ही राज्यों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों के उनके बीच लड़ाई जारी है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच ही इसे लेकर मुख्य विवाद है लेकिन चूंकि कावेरी बेसिन में केरल और पांडिचेरी के कुछ इलाके शामिल हैं तो इस विवाद में वे भी शामिल हो गए हैं।
मैसूर रियासत-मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच समझौता
कावेरी के जल पर कानूनी विवाद का इतिहास काफी पुराना है। 1892 में तत्कालीन मैसूर रियासत और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच पानी के बंटवारे को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। इसके बाद 1924 में भी विवाद के निपटारे की कोशिश की गई लेकिन बुनियादी मतभेद बने रहे।
1990 में गठित कावेरी ट्रिब्यूनल का फैसला
जून 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी ट्रिब्यूनल, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद 2007 में फैसला दिया कि प्रति वर्ष 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए जबकि 270 अरब क्यूबिक फीट पानी कर्नाटक के हिस्से आए। कावेरी बेसिन में 740 अरब क्यूबिक फीट पानी मानते हुए ट्रिब्यूनल ने यह फैसला दिया केरल को 30 अरब क्यूबिक फीट और पुद्दुचेरी को 7 अरब क्यूबिक फीट पानी देने का फैसला दिया गया। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु ट्रिब्यूनल के फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने समीक्षा याचिका दायर की।
2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाले कावेरी नदी प्राधिकरण ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वो रोज तमिलनाडु को नौ हजार क्यूसेक पानी दे। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को फटकार लगाई और कहा कि वो इस फैसले पर अमल नहीं कर रहा है। कर्नाटक सरकार ने इसके लिए माफी मांगी और पानी जारी करने की पेशकश की।
लेकिन फिर भी मुद्दा नहीं सुलझा
इसे लेकर कर्नाटक में हिंसक प्रदर्शन हुए। कर्नाटक ने फिर पानी रोक दिया तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ट्रिब्यूनल के निर्देशों के अनुसार उन्हें पानी दिया जाए। अब अदालत ने कर्नाटक सरकार से कहा है कि वो अगले 10 दिन तक तमिलनाडु को 12 हजार क्यूसेक पानी दे।
वर्तमान में दोनों ही राज्य कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर ट्रिब्यूनल के 1991 के निर्देशों का ही पालन कर रहे हैं।
दोनों राज्यों को खेती के लिए चाहिए पानी
पिछले कुछ सालों में अनियमित मानसून और बेंगलुरु में भारी जल संकट की वजह से कर्नाटक बार-बार यह कहता रहा है कि उसके पास कावेरी नदी बेसिन में इतना पानी नहीं है कि वह तमिलनाडु को उसका हिस्सा दे सके। वहीं, तमिलनाडु का तर्क है कि राज्य के किसान साल में दो फसल बोते हैं, इसलिए उन्हें कर्नाटक के मुकाबले ज्यादा पानी मिलना चाहिए। साल 2016 में कावेरी विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद पूरे कर्नाटक में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आना है।