समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा, ’25 जून 1975 को लागू आपातकाल लोकतंत्र की सबसे बड़ी त्रासदी थी. इसकी याद आज भी सिहरन पैदा करती है. लोकतंत्र की उस दुर्घटना के विरोध में जनता उठी तो दूसरी आजादी की रक्षा हो सकी. आज फिर देश के सामने संक्रमणकाल की स्थिति है। बिना घोषणा के भी आपात स्थिति पैदा किए जाने की संभावनाएं विद्यमान है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इन दिनों वैचारिक प्रतिबद्धता पर भारी संकट का दौर है. किसानों के विरूद्ध गहरी साजिश का बड़ा कारण कारपोरेट पूंजीवाद को ताकत देना है. यह स्थिति नीतियों की प्राथमिकता को प्रभावित करती है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद बिना सामाजिक न्याय के कैसे संभव हो सकेगा? यह सब भी आपातकाल का दबे कदम आने का संकेत है. इस अघोषित आपातकाल में लगभग वही लक्षण रहते है जो 1975 में घोषित आपातकाल में थे. भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की मान्यताओं और नैतिक मूल्यों को धता बताकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को तहस नहस करने का इरादा ही कई संकटों को आमंत्रित कर सकता है.’
चौधरी ने यह भी कहा, ‘सरकारों द्वारा मनमानी और अधिकारों को दर किनार कर नागरिकों के संवैधानिक मौलिक अधिकारों का दमन घोषित अथवा अघोषित दोनों स्थितियों में खतरे की वजह बन सकता है. सांप्रदायिकता और जातियों के बीच वैमनस्य लोकतंत्र को कमजोर करता हैं. सामाजिक गैरबराबरी और आर्थिक विषमता के कारण तनावपूर्ण स्थिति का बने रहना स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों की अवहेलना है. छात्रों-नौजवानों की बेकारी दूर करने का कोई समाधान नहीं किया जाता है. वहीं अगर वे अपने अनिश्चित भविष्य के विरूद्ध आवाज उठाते हैं तो उनका दमन किया जाता है. ठीक इसी तरह किसानों के साथ भी कम अत्याचार नहीं हो रहे हैं.’