इलाहाबाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय पिछले कुछ सालो से सियासी वजहों से सुर्खियों में है ।अकादमिक सफलताओं और राजनीतिक दृढ़ता के केंद्र रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कैंपस में बीते चार सालो से आंदोनलों की बहार है। इविवि कैम्पस में आंदोलनों के जरिये छात्र राजनीत में मुखर तरीके से लम्बे अंतराल के बाद आन्दोलन की आवाज दिल्ली तक गई। इन सबके केंद्र बिंदु में छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह लम्बे समय तक रही। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1927 के बाद पहली बार कोई छात्रा अध्यक्ष बनीं और यह खबर चुनाव परिणाम आने के बाद से लेकर अपने पुरे कार्यकाल में सुर्खियों में बनी रही। बतौर अध्यक्ष ऋचा ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन करके विधानसभा चुनाव में मैदान में आयी।
सियासत के शहर में पुरे प्रदेश में चर्चित और वीआइपी सीट शहर पश्चिमी से चुनावी मैदान में उतरी।उनके सामने बाहुबली अतीक का राजनितिक किला ढहाने वाली पुजा पाल और प्रधानमन्त्री के एक्सपेरिमेंटल व्याय और पूर्व प्रधानमन्त्री के पौत्र सिद्धार्थ नाथ सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ी और भाजपा के भयकर लहर में दुसरे स्थान रही ।छात्र राजनीत में राष्ट्रिय मीडिया तब उनकी चर्चा हुई जब उन्होंने भाजपा के फायर ब्रांड तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ से दो.दो हाथ करने की ठानी और इविवि कैम्पस में उनके कार्यक्रम को रद्द करा दिया ।
सपा सुप्रीमो ने दी बड़ी जिम्मेदारी
इविवि छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष और पूर्व विधानसभा प्रत्याशी ऋचा सिंह को एक बार फिर राजनीति सफलता मिली है। ऋचा को समाजवादी पार्टी ने अपना पैन्लिस्ट घोषित किया है। गौरतलब है की जब सामजवादी पार्टी अपनी सबसे बड़ी लड़ाई परिवाद की लड़ रही थी।उस समय पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ऋचा को अपना पर्त्याशी बनाया था।और उसके बाद से टीम अखिलेश अपने करीबियों और विश्वास पात्रो को ही संघठन के पदों पर तैनात कर रही है। ऋचा का संगठन में कद ऐसे समय बढाया गया है जब फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव का महत्वपूर्ण समय बेहद कारीब है।और चुनावी सरगर्मियों में पार्टी का विश्वास निश्चित ही ऋचा के लिये अच्छा सकेंत है।ऋचा विधानसभा चुनाव के बाद देश भर में छात्र संगठनों के साथ राजनितिक मंचो पर अपनी उपस्थति लगातार दर्ज करा रही है। अभी हाल में बीते बीते नगर निकाय चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी के लिये मंच से समर्थन मागने वालो में से सबसे प्रमुख चेहरे की तरह ऋचा रही है।बीते दिनों पुणे में दलित आन्दोलन और फिर दिल्ली में जिग्नेश मेवानी के साथ मंच साझा कर और मुंबई में गिरफ्तार हो कर देश भर में सुर्खियों में रही।और सपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री ऋचा सिंह को जिम्मेदारी दी है।
ऋचा का सियासी सफर नामा
ऋचा सिंह सत्र 2015-16 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव अपने नाम किया है। ऐसा करके ऋचा सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 128 साल पुराने रिकॉड को तोड़ दिया। 2017 यूपी विधान सभा चुनाव में शहर पश्चिमी से सपा प्रत्याशी रहीं और दो बार के विधायक पूजा पाल को 20000 वोटों से पछाड़कर दूसरे स्थान पर रहीं। इन्होंने इलाहाबाद छात्रसंघ आंदोलन मॆ अच्छी भूमिका निभाई है। सन् 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार ने महिला दिवस पर रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से पुरस्कृत किया। 2016 में ब्रिटिश हाई कमान की तरफ से यंग स्टूडेंट लीडर को बुलाया गया, जिसमें से भारत से 12 सदस्य और उत्तर प्रदेश से ऋचा सिंह ने प्रतिनिधित्व किया। ऋचा सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट हैं। औऱ उनका ग्लोबलाइजेशन पर शोधकार्य चल रहा है। ऋचा सिंह अर्थशास्त्र से परास्नातक किया है। साथ ही इन्होंने दो विषयो- अर्थशास्त्र व महिला अध्ययन पर नेट क्वालिफाइड है।ऋचा अपने अच्छे भाई बहनों में सबसे छोटी है। इनके पिता बीपी सिंह बिजली विभाग के जूनियर इंजीनयर पद से रिटायर्ड हैं औऱ मां माँ शांति देवी ग्रहणी हैं।ऋचा सिंह का सफर जारी है और बीते साल सितंबर में स्विट्ज़रलैंड के जीनोवा में होने वाले यूथ कांफ्रेंस में भाग लिया था।