लखनऊ, दीपक ठाकुर। कानून व्यवाथा हर प्रदेश के लिए बड़ा मुद्दा होता है।खास तौर पर उत्तर प्रदेश में तो इस मुद्दे ने तख्ता ही पलट कर रख दिया था मगर कानून व्यवस्था में कोई बदलाव हो पाया ये कहना ज़रा मुश्किल है हालांकि प्रदेश के मुखिया इसको लेकर काफी संजीदगी से एक्शन ले रहे है पर वो बात नही दिख पा रही जो दिखनी चाहिए जिसका कारण जो मेरी समझ मे आ रहा है वो ये है कि सरकार कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए थानों पर जो फेर बदल करती है उसमें वो कुछ असमंजस की स्थित में नज़र आती है।
आप सभी जानते ही होंगे कि किसी भी थाना क्षेत्र में अगर आपराधिक मामलों में इज़ाफ़ा होता है तो सबसे पहले गाज वहां के थानेदार पर गिरती है और फलस्वरूप उसका स्थानांतरण कर दिया जाता है फिर नए थानेदार की तैनाती होती है ताकि अपराध नियंत्रण हो सके।
लेकिन होता अक्सर क्या है कि जिस थानेदार का स्थानांतरण अपराध ना नियंत्रित कर पाने के लिए एक थाने से दूसरे थाने पर किया जाता है उसको कुछ समय बाद फिर वही की बागडोर सौंप दी जाती है तब समझ मे नही आता कि अगर थानेदार बेदाग था तो उसे हटाया क्यों गया था और जब हटाया गया तो उसने ऐसा क्या किया कि उसकी फिर से वापसी हो गई बड़ा चक्कर है इस फेर बदल में जिसको समझ पाना मुश्किल है।
और ये मुश्किल सरकार को भी परेशान करती है तभी यहां वहां सब ऐसा ही चलता है जिससे अपराध जस का तस रहता है बस थानेदार बदल जाता है क्या करे सरकार सिस्टम ही ऐसा है जिसमे फर्क सिर्फ उस नाम वाली लिस्ट में पड़ता है जिसमे लिखा होता है कि इस थानेदार ने इतने समय तक यहां सेवा दी और हैरत की बात तो ये है कि कई जगह तो बार बार के चक्कर मे नाम तक नही डाले जाते शायद वो जानते होंगे कि साहब आज नही तो क्या कल ज़रूर यहीं आएंगे।अब समझ ये नही आता कि जब वापसी ही करनी रहती है तो निकासी क्यों की जाती है बेवजह का दाग क्यों लगया जाता है।