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Thursday, September 12, 2024

​समिति का सुझावः दिवालिया बिल्डर की संपत्ति में घर खरीदारों को भी मिले हिस्सा

घर खरीदारों के लिए अच्छी खबर है। अगर उनका बिल्डर या बिल्डर कंपनी दिवालिया हो जाती है तो उनके पैसे पूरी तरह से नही डूबेंगे। इसके लिए इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड में बदलाव किए जा रहे हैं। यह बदलाव कोड में बदलाव के लिए बनी कमिटी ने कई अहम सिफारिशें के आधार पर होंगे।
बैंकरप्ट्सी कोड में बदलाव के लिए कमिटी ने सिफारिशें की है कि दिवालिया बिल्डर की संपत्ति बेचने पर उन घर खरीदारों को भी हिस्सा दिया जाए जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। उनको कितना हिस्सा दिया जाए, यह उस बिल्डर द्वारा लोन पर आधारित होगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कमिटी की सोच है कि बिल्डर के दिवालिया होने पर उन घर खरीददारों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। इससे तो उनके सारे पैसे डूब जाएंगे और उन्हें घर भी नहीं मिलेगा।

गौरतलब है कि मौजूदा कानून के तहत अगर कोई बिल्डर या बिल्डर कंपनी दिवालिया हो जाती है तो उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार बैंकों का होगा, जिससे उनसे कर्ज ले रखा है। बैंकों को उनकी सम्पत्ति को अपने अधिकार में लेकर बेचने और उससे जुटाये गए धन को कर्ज के एवज में लेने का अधिकार होगा।

कितना मिलेगा हिस्सा?

कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिवालिया होने पर बिल्डर या बिल्डर कंपनी की सम्पत्ति बेचने पर जितना धन मिलेगा, उसमें कितना फीसदी घर खरीददारों को दिया जाए, इस बात का फैसला कई पैमानों पर तय किया जा सकता है। सबसे पहले यह देखा जाए कि बिल्डर पर कितना पैसा बकाया है। कितने घर खरीददारों को पजेशन नहीं मिला है और उनकी कितनी देनदारी है। यह देखा जाए कि कितने का लोन बिल्डर पर बकाया है। इसके बाद यह तय किया जाए कि सम्पत्ति बेचने के बाद उससे प्राप्त धन में कितनी हिस्सा घर खरीददारों को दिया जा सकता है। इसके लिए बैंकों और अन्य एक्सपर्ट से बात करके अंतिम फैसला लिया जा सकता है।

किसलिए जरूरी है?

वित्त मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि ऐसे मामले सामने आए हैं कि कई बिल्डर कंपनियों ने आवासीय परियोजना के लिए प्राप्त धन को अपनी किसी अन्य कंपनी में लगा दिया। इससे प्रॉजेक्ट में देरी हुई और उसके पास धन की कमी हो गई। ऐसे में घर खरीददारों को घर पाने के लिए लंबे समय से इंतजार करना पड़ रहा है। सरकार ने इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड के तहत ऐसे में मामलों को सुलझाने के लिए तीन मापदंड तय किए हैं। पहले कंपनी से बात किया जाए और उसे इस समस्या को निपटाने के लिए तय समय दिया जाए। अगर कंपनी बात न करे तो तय समय के बाद उसकी सम्पत्ति अटैच किया जाए। अगर कंपनी खुद को दिवालिया घोषित करती है तो उसकी पूरी सम्पत्ति को अटैच कर उसे तुंरत बेचा जाए।

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