लखनऊ, दीपक ठाकुर। हादसे कब कहाँ कैसे हो जाएं कहा नही जा सकता हम बस हर जगह सावधानी ही बरत सकते हैं और कहा भी गया है कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी जिसका नज़ारा आज सबने देख भी लिया पूरी से हरिद्वार जाने वाली उत्कल एक्सप्रेस किस तरह दुर्घटना ग्रस्त हो गई इससे आप सब भली भांति परिचित हो गए होंगे इस मानवीय लापरवाही द्वारा हुई दुर्घटना में 20 से अधिक लोगो की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल बताये जा रहे हैं हमारी सरकार ने भी लापरवाही किये जाने की बात की है साथ ही घटना के जांच के आदेश भी दे ढ़िये हैं।
पर क्या सिर्फ मुवाबज़ा देना जांच करवाने की बात करना बस यही सरकार की जिम्मेवारी है ये एक बड़ा सवाल है क्योंकि ये विभाग भी काफी बड़ा और बड़ी ज़िम्मेवारी वाला है पर लगता है कि सरकार इस विभाग को सिर्फ धन उगाही के लिए इस्तमाल करने पर आमादा है जनता की जान से सरकार का कोई सरोकार नही है।अगर होता तो आयेदिन ट्रेनों में हादसे ना होते रही बात जांच में दोषी पाए जाने वालों पर कारवाई की तो सरकार ज़्यादा से ज़्यादा उन्हें सस्पेंड कर अपना पल्ला झाड़ लेगी पर इससे क्या हादसे में पीड़ित हुए लोगों और उनके परिजनों को कोई खुशी मिल पाएगी।
हम ट्रेन में सफर यही सोच कर करते है कि हम सुरक्षित अपनी मंज़िल तक पहुंच जाएंगे पर ऐसा सोचना ही हमारी बड़ी भूल साबित होता है क्योंकि सरकारी तंत्र हमे भगवान भरोसे जो रख छोड़ता है ना आपको ट्रेन के अंदर सुरक्षा मिलती है ना ही बाहर दोनों जगह के ज़िम्मेदार लोग सरकारी ड्यूटी बजाने की सिर्फ फार्मेल्टी में ही जो लगे रहते हैं।
यहां सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करना हमारा मकसद नही है हमे तो बस ये कहना है कि देश वासियों की जान लापरवाही में ना जाये इसका कुछ इंतज़ाम कीजिये आपसे नही सम्भलता तो इसका भी निजीकरण कर दीजिये प्राइवेट काम वैसे भी छुरी की नोक पर होता है छोटी गलती भी बाहर का रास्ता दिखा देती है जो सरकारी विभाग में किया जाना मुमकिन ही नही है।
ये एक सुझाव है जो देने की कोशिश की है क्योंकि ऐसी घटना से दिल दुखता है किसी का सब कुछ उजड़ जाने के बाद उसे मुवाबज़ा देना सही नही है उससे घाव नही भरता कोशिश तो ये होनी चाहिए कि ऐसी घटना ही ना घटे जो फिलहाल आपकी ज़िम्मेवारी है।