नवेद शिकोह न्यूज़ वन इंडिया। “जनाक्रोश से अन्ना पैदा होता है, कोई अन्ना जनाक्रोश नहीं पैदा कर सकता”
पिछली सरकार के खिलाफ अन्ना आन्दोलन ने उबाल पैदा नहीं किया था बल्कि सरकार के खिलाफ उबाल ने अन्ना को देश का सबसे बड़ा गैर सियासी जन नायक बना दिया था। ये बात अलग है कि अपना फायदा देखते हुए भाजपा/आर एस एस ने अन्ना आन्दोलन को खूब हवा दी थी। यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का जादू अस्थायी तौर पर ही उन्हें महानायक या जन नायक बना सका था। इस जादू का दूरगामी परिणाम ये हुआ कि अन्ना मेजिक शो भाजपा को जिन्दगी दे गया और कांग्रेस को मौत। साथ ही अन्ना के सिपहसालार अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हो गयी।
जादू की चमक का उजाला दूसरों के हिस्से में आ चुका था। अन्ना टीम के साथ लोकपाल का सपना भी टूट चुका था, इसलिए अन्ना अलग-थलग गुमनामी के अंधेरे में खो सा गये।
जब केंद्र में भाजपा सरकार आई और उसने भी लोकपाल की मांग को नजरअंदाज किया। भ्रष्टाचार भी कम नहीं हुआ।
तब अन्ना ने भाजपा सरकार के खिलाफ भी जंतर-मंतर पर रैली आयोजित की थी। जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी शामिल होना था। लेकिन अन्ना की ये रैली फ्लाप होते देख ममता ने इस मंच पर जाना मुनासिब नहीं समझा था। भाजपा सरकार विरोधी इस रैली के फ्लाप होने से ये साबित हो गया कि मोदी सरकार के खिलाफ माहौल नहीं है। यही कारण रहा कि इस विफलता से क्षुब्ध अन्ना खामोशी से बैठ गये।
इस बीच साढ़े तीन साल गुजरने के बाद माहौल बदल चुका है। बेरोजगारी, गरीबी और मंहगाई की आंधी से लोग आजिज आने लगे हैं। सरकार विरोधी माहौल की आहट में एक बार फिर पवेलियन से मैदान की तरफ आते दिखाई दे रहे है अन्ना हजारे।