लखनऊ, दीपक ठाकुर। लखनऊ विकास प्राधिकरण एक ऐसा विभाग जिसमे काम की भरमार के साथ काम करने वालों की तिकड़म बाज़ी की भी भरमार रहती है।यहां नौकरी करने वाला हर शख्स लखपती है पर गाज गाहे बगाहे सिर्फ एक आध पर ही गिरती है जबकि ये बात सभी जानते हैं कि बड़े पैमाने पर सरकारी विभाग में घपला करना किसी एक के बूते का नही होता।
इन दिनों एलडीए के एक बाबू पर वही के वीसी का शिकंजा कसा हुआ दिखाई दे रहा बाबू द्वारा किये गए हर कृत्य पर पैनी नज़र रखी जा रही साथ ही उसके किये गए कामो में खामी भी दिल खोल कर निकाली जा रही हैं।अखबार में सुर्खी बटोर रही एलडीए की कार्यवाही पर एलडीए भले ही अपनी पीठ थपथपाएं पर लोग जानते हैं कि इस तरह की कार्यवाही बड़ो को बचाने के लिए ही की जाती है।
अभी जिस प्रियदर्शनी कालोनी में धांधली किये जाने की खबर आ रही है वो धांधली क्या सिर्फ एक बाबू ही कर सकता है ये एक बड़ा सवाल है एक ज़मीन के दो दो या उससे अधिक दावेदार खड़े करना या पूरे सिस्टम को बदल कर कोई भी अनैतिक काम करना क्या एक बाबू के बस का है नही बिल्कुल नही क्योंकि बाबू के ऊपर भी कई लोग बैठे हैं जिनके हस्ताक्षर के बिना कोई फाइल पास ही नही हो सकती।
जब चेन इतनी व्यापक है तो दोषी सिर्फ एक को ही क्यों माना जाए जब जब एलडीए में फर्जीवाड़े की कोई खबर हाईलाइट होती है तब तब एलडीए द्वारा ऐसी ही कार्यवाई को अंजाम दे कर बाकियों को क्लीन चिट दे दी जाती है और होता उस बाबू का भी कुछ नही बस थोड़ी पेपर बाज़ी और ज़्यादा से ज़्यादा कुछ दिन की बर्खास्तगी ही होती है।
तो इस घटनाक्रम को एलडीए की नोटंकी नही तो और क्या समझा जाएगा भाई अगर कोई संस्था किसी कार्य मे लापरवाही बरतती है तो पूरी संस्था संदेह के घेरे में आएगी या सिर्फ उसका एक सदस्य वो भी ऐसा जिसके ऊपर कई औऱ मठाधीश बैठे हैं जिनकी मुहर के बिना वो बाबु किसी लायक ही नही है।
तो लखनऊ विकास प्राधिकरण के ज़िम्मेदार लोग इस बात को समझे कि ऐसी कार्यवाई से आप खुद को तो पाक साफ कर ले जाओगे एक को फ़सा के पर वहां का माहौल ही गंदा है ये हर आदमी जानता है।पैसा दो काम लो ये है आपके विभाग की वो परिभाषा जिससे हम सब भलीभांति परिचित हैं क्योंकि अगर ऐसा ना होता तो अवैध निर्माणों की लाइन ना लगती और ज़मीन या मकान पाने के लिए आवंटी कोर्ट के चक्कर ना काट रहा होता।
यहां फिर एक बार मुख्यमंत्री जी से गुजारिश है कि ऐसे संजीदा विभाग पर आप संजीदगी दिखाइए और कमान उन हाथों में दिजिये जो हाथ कलम चलाने के बदले कुछ मांगने से तौबा करते हों नही तो ऐसे ही विकास होता रहेगा एलडीए कर्मचारियों का और आवंटी कागज़ थामे दर दर भटकते रहेंगे।