लखनऊ,दीपक ठाकुर। रामजन्म भूमी आस्था से जुड़ा मामला है इसका हल अदालत के बाहर आपसी सहमति से निकालने की पहल होनी चाहिए ये बात कह कर सुप्रीम कोर्ट ने आस्था पर विश्वास तो दिखाया ही है साथ ही किसी को ठेस ना पहुंचे इसका भी पूरा ध्यान रखा है पर यही बात आज वो लोग नहीं समझ रहे जो विवाद में ही आनन्द तलाशने की कोशिश में लगे रहते है।ऐसे ही एक सज्जन है अधिवक्ता जफरयाब जिलानी साहब जो इस मामले में एक पक्ष की वकालत भी कर रहे हैं।
कोर्ट की इसी टिपणी पर मिडिया जगत में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया एक निजी चैनल ने भी इसी मुद्दे पर एक घंटे की बहस रखी जिसमे दोनों पक्षों के लोगों को शामिल किया गया था चर्चा शुरू हुई तो ज़फर याब जिलानी साहब ने अपने तर्क रखे जिसे सबने बड़े ध्यान से सुना पर जब उस पर जवाब सुनने की बारी आई तो जिलानी साहब अपना आपा ही खो बैठे इस दौरान उन्होंने कई ऊलजलूल बातें भी शुरू कर दीं एंकर के रोकने पर इतना अधिक भड़क गए की चर्चा के बीच से ही निकल लिए अब आप ही बताइये इस तरह का व्यवहार जिलानी जैसे सभ्य तजुर्बेकार अधिवक्ता को शोभा देता है क्या,क्या जिलानी साहब खुद को सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा मानते है या उनको सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर संदेह है कोर्ट जो भी फैसला या टिपणी करता है तो वो सबूत के आधार पर करता है ये बात जिलानी साहब से बेहतर कौन जान सकता है जब आपने इस मसले पर साक्ष्य प्रस्तुत किये होंगे तो आपको तो पता ही होगा की आपका पक्ष कितना मज़बूत है जब पता होगा तो सीधे आप ये भी बोल सकते थे कि आप कोर्ट के ही फैसले पर टिके रहेंगे और फैसला जो भी आये उसको सहर्ष स्वीकार करेंगे।
पर आपने टीवी चैनल पर जो अपनी छवि प्रस्तुत की उससे तो यही लगता है कि आपके पास है कुछ नही पर पाना सबकुछ चाहते है अरे आपकी दलील में दम था तो लोगों से जिरह करते इस तरह प्रोग्राम छोड़ कर चले जाने से आप क्या साबित करना चाहते है।अजीब बात है माननीय उच्च न्यायालय जो बात समझ कर ये बात कह रहा है वो बात आपके पल्ले क्यों नहीं पड़ रही या आप बात आसानी से सुलझे ये चाहते ही नहीं है।अगर चाहते हैं तो टीवी चैनल से बिना प्रोग्राम खत्म हुए हट क्यों गए।
ज़फरयाब जिलानी साहब की बातों और उनके तेवर पर समाज में क्या सन्देश जाएगा ये तो बाद में पता चलेगा पर फिलहाल उनकी बातें ये बताने में ज़रूर कामयाब दिखी की जो अमन चैन सुप्रीम कोर्ट चाहता है वो उसके पक्ष में हैं ऐसा बिल्कुक नज़र नहीं आ रहा है उनका सीधे तौर पर ये कहना है कि बात चीत से मसला हल नहीं होने वाला है क्योंकि बातचीत पहले भी विफल ही रही थी।
वैसे इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने समझौते का जो रास्ता दिखया है वो वास्तव में काफी सराहनीय है आपस में मिल बैठ कर ही इसका हल निकालना चाहिए ऐसा हल जिससे किसी की आस्था भी ना आहात हो और कोई खुद को ठगा सा भी ना महसूस कर सके।