28 C
Lucknow
Thursday, December 12, 2024

​हंसी आती है जब लोकतंत्र का गला घोंटने वाले…

लखनऊ, दीपक ठाकुर। हमारा देश लोकतांत्रिक देश है जो देश के बनाये गए संविधान के अनुसार ही काम करता है यही संविधान ये कहता है कि भारत की जनता को ये अधिकार है कि वो अपनी पसंदीदा पार्टी को चुन कर देश या प्रदेश की बागडोर सौंपे।ऐसा आज़ादी के बाद से होता चला आ रहा है।मगर जैसे जैसे देश का विकास हुआ यहां का लोकतंत्र मज़बूत हुआ वैसे वैसे ही यहां की राजनीती का भी रंग बदलने लगा राजनीती में बाहुबल और धनबल का बोलबाला होने लगा और नेता लोग खुद के स्वार्थ में ढलते चले गए बस यही से लोकतंत्र का गला घोंटा जाने लगा।

अमूमन होता ऐसा है कि कुर्सी और उसकी पावर की चाहत नेताओ पे इस क़दर हाबी है कि वो इसको पाने के लिए किसी भी हद तक जाने लगते हैं अब संविधान में जो मेजोरिटी की बात कही गई है उसके लिए हर प्रकार का संघर्ष चुनाव से पहले और चुनाव के बाद दिखाई देता है सभी जोड़ तोड़ में सिर्फ कुर्सी की लालच में लग जाते है बस यहीं दम घुटने लगता है लोकतंत्र का।

आंकड़ों के खेल के आगे जनता लाचार नज़र आती है उसी का फायदा सियासी लोग उठा कर दुश्मन को गले लगाकर कुर्सी पर बराबरी की जगह तलाशने लगते है जो किसी के खिलाफ बोलते थे वो मौका देख कर उन्ही की गोद मे बैठ जाते जाते है।

जनता अपना मत देकर किसी एक दल पर भरोसा तो जताने में कामयाब हो जाती है पर उसकी उम्मीद तब तार तार हो जाती है जब उसकी चुनी बड़ी पार्टी आंकड़ों के चक्कर मे विपक्ष में बैठने को मजबूर हो जाती है और जिसे जनता नकारती है वो सभी दल मिलकर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं तो बस यहीं गला घुटता है लोकतंत्र का।

ऐसा नही है कि इस काम मे किसी एक ही दल का एकाधिकार हो यहां तो हर दल इस दलदल में पूरी तरह समाया हुआ है सबको सबसे पहले कुर्सी ही नज़र आती है उसके बाद जनता की याद आती है अजीब खेल हैं आंकड़ों का जो अब लोकतंत्र का गला घोंटने लगा है।

आपके सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जो ये साबित करने के लिए काफी हैं कि किस तरह लोकतंत्र का मज़ाक बनता चला आ रहा है ये करता कौन है देश की राजनैतिक पार्टी और उनके नेता फिर हंसी तभी आती है कि जब इसको करने वाला ही इस तरह की बात कह के अपनी खीज निकालता है। जिसको मौका नही मिलता वो कहता है लोकतंत्र की हत्या हुई है और जो मौके पे चौका लगा जाता है वो कहता है कि यही जनता की आवाज़ है।कमाल ही है ये जो भी हो रहा है मानो ना मानो यहां तुम्हारी इन्ही हरकतों से लोकतंत्र रो रहा है।लगता है इस खेल को बंद करने के लिए संविधान के पन्नो पर फिर से विचार करने का वक़्त आ गया है ये आंकड़े ही हैं जो लोकतंत्र की हत्या करवा रहे हैं।बड़ी पार्टी को ये अधिकार देना चाहिए कि वो जनता की आवाज़ बने ना के जोड़तोड़ वालो को जुगाड़ की नई राह मिले।

Latest news
- Advertisement -spot_img
Related news
- Advertisement -spot_img

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें