कुछ ख़बरें होती हैं जिन्हें पढ़कर दिल को सुकून मिलता है. लगता है कि दुनिया उतनी बुरी नही है जितनी लगती है. उत्तरप्रदेश के फैजाबाद से एक खबर आई है. हमें यकीन है इसे पढ़कर आपको अच्छा लगेगा. अक्सर सरकारी तंत्र अपनी संवेदनहीनता के लिए ही ज्यादा चर्चा में रहता है. लेकिन फैजाबाद से आज जो खबर आई उसे पढ़कर आपको लगेगा कि उसमें भी अच्छे लोग हैं.
फैजाबाद के मुमताज नगर गाँव की रहने वालीं रमापति, जिनकी उम्र करीब 100 साल है, बेसहारा तो हैं ही, बेहद गरीब भी हैं. दो जून की रोटी बस भगवान भरोसे ही चल पाती है. शायद किसी ने सलाह दी होगी, तभी बूढ़ी अम्मा सरकारी मदद की आस में अपने पहचान पत्र आदि लेकर डीएम दफ्तर आ पहुंची.
जैसा कि आप जानते हैं, डीएम एक ऐसा पद है जिस पर बैठा आदमी शायद ही कभी फुर्सत में रहता हो और उसके दरवाजे पर मिलने वालों की लाइन शायद ही कभी ख़त्म होती हो. फिर भी इंतज़ार कर रहे लोगों की भीड़ में खडीं ठण्ड से कांपती रमापति पर डीएम अनिल कुमार पाठक की नजर पड़ ही गई.
इतनी बुजुर्ग महिला को अपने दरवाजे पर देखक डीएम साहब तुरंत उठ कर आये और उन्हें भीतर ले गए. उन्हें कुछ खिलाया पिलाया, तसल्ली से उनकी बात सुनी. उनकी कहानी सुनने के बाद डीएम साहब ने तुरंत फैसला लेते हुए उन्हें अपनी माँ ही बना लिया. कहने का मतलब उनकी पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली.
डीएम पाठक ने कहा कि सरकारी योजनाओं के तहत जो भी होगा वह तो रमापति के लिए किया ही जाएगा, वे निजी तौर पर भी उनकी देखभाल अपनी माँ की तरह करेंगे. उन्होंने रमापति के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक घर, और वृद्धावस्था पेंशन के भी आदेश दिए. उनके गाँव के नजदीकी हॉस्पिटल में निर्देश भिजवाया ताकि डॉक्टर उनका नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण करे. कहने का अर्थ यह कि शतायु हो चुकी इस बुजुर्ग माँ की बाकी ज़िन्दगी अब आराम से कटेगी. वे तो बेचारी बहुत थोड़े की आस में आईं थीं पर उन्हें बहुत मिल गया.
इसके बाद उन्होंने कुछ नकद रुपये देकर उन्हें घर भेजने का इंतजाम किया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक दुःख और अभावग्रस्त जीवन बिता रहीं रमापति जब जब इतना मान और प्यार पाकर वहाँ से निकलीं, तो उनकी आँखों में आँसू छलक आये.