नई दिल्ली. 120 साल कावेरी जल विवाद पर SC का फैसला आ गया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि नदी पर किसी राज्य का अधिकार नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर अपने बड़े फैसले में तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी फुट पानी देने को कहा है। इससे कर्नाटक को फायदा मिला है। इससे पहले 20 सितंबर को कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी की ओर से कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण के 2007 के फैसले के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। कावेरी मुद्दे पर 2007 के निर्णय के खिलाफ तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पुनर्विचार करने की अपील की थी। कर्नाटक ने अपना पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि 1924 में ब्रिटिशकालीन मद्रास प्रांत और मैसूर रियासत के बीच हुए समझौते को मौजूदा कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल बंटवारा विवाद में आधार नहीं बनाया जा सकता।
2007 में डीडब्लूडीटी ने दिया था फैसला
कावेरी जल विवाद पर 2007 में सीडब्ल्यूडीटी ने कावेरी बेसिन में जल की उपलब्धता को देखते हुए एकमत से निर्णय दिया था कि तमिलनाडु को 419 टीएमसी फुट (हजार मिलियन क्यूबिक फुट) पानी आवंटित किया गया, जबकि कर्नाटक को 270 टीएमसी फुट, केरल को 30 टीएमसी फुट और पुडुचेरी को सात टीएमसी फुट पानी आवंटित किया गया था। शीर्ष अदालत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इसके फैसले के बाद ही कोई पक्ष कावेरी से जुड़े मामले पर गौर कर सकता है। लेकिन कर्नाटक और तामिलनाडु के लोग इस फैसले से सहमत नहीं थी।
इंटरस्टेट बस सेवा पर रोक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए एहतियातन कर्नाटक से तमिलनाडु जाने वाली और तमिलनाडु से कर्नाटक आने वाली बस सेवाओं को रोक दिया गया है। कर्नाटक-तमिलनाडु के बॉर्डर के अलावा कावेरी बेसिन इलाकों और बांध पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। बेंगलूरू में भी सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। बेंगलुरू के पुलिस आयुक्त टी सुनील कुमार ने मीडिया को बताया है कि 15 हजार पुलिसकर्मियों को ड्यूटी पर तैनात किया गया है। इसके अलावा कर्नाटक राज्य रिजर्व पुलिस के कर्मी और अन्य सुरक्षा बलों को भी तैनात किया जाएगा। उन्होंने कहा कि संवेदनशील इलाकों पर विशेष तौर पर नजर रखने को कहा गया है। इस मामले में कर्नाटक दावा करता रहा है कि कृष्णराज सागर बांध में सिर्फ उतना पानी है जो केवल बेंगलुरू की आवश्यकता को पूरी करता है ।
केन्द्र की जल विवाद कानून लाने की तैयारी
पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार ने विभिन्न राज्यों के बीच बढ़ते जल विवादों को देखते हुए अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को संसद में फिर पेश करेगी। इसमें अधिकरणों के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों की आयु और निर्णय देने की समय सीमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। प्रस्तावित विधेयक को जल्द ही कैबिनेट में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।