लखनऊ,दीपक ठाकुर। हमारे आपके लिए 2019 में भले अभी काफी वक्त है पर राजनैतिक गलियारों से उसकी सुगबुगाहट अभी से दिखाई देने लगी है। अभी ताज़ा उदाहरण आपको याद होगा जब अखिलेश यादव से ममता बेनर्जी की मुलाकात हुई थी अब उस बे वक्ती मुलाकात के क्या मायने है उसे जनता को समझने में कोई मुश्किल नही होगी सभी जान गए होंगे कि ये सारी रूपरेखा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक चुनावी महागठबंधन की तैयारी के लिए की जा रही है।
भारतीय जनता पार्टी से सभी दल खासे नाराज है जिसका पहला और प्रमुख कारण तो मोदी सरकार द्वारा की गई नोट बंदी को माना जा रहा है वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में मिले विशाल जन समर्थन ने भी विरोधियों की रात की नींद और दिन का चैन उड़ा रखा है।
अब इन सब पार्टियों के पास बीजेपी पर हमला बोलने का जो एक मात्र अवसर बचा है वो है 2019 का लोकसभा चुनाव तो उसमें ये विपक्ष एक पक्ष हो कर बीजेपी को हराने के लिए एक मुहिम में जुटा हुआ दिखाई दे रहा है और ये मुहिम चुनाव में महागठबंधन के रुप मे दिखाई देने वाली है तो आप ये समझ लीजिए कि अगर ऐसा हुआ जिसकी संभावना बहुत अधिक है उसके बाद चुनाव किसके किसके बीच होगा।
ज़ाहिर तौर पर महागठबंधन बनने के बाद भाजपा और महागठबंधन ही आमने सामने होंगे फिर जनता को सिर्फ ये चुनना पड़ेगा कि भजपा या कोई भी अब कोई भी पर जनता कितना विश्वास जताएगी ये तो समझने वाली बात है पर अगर ऐसा हुआ तो कहीं ना कहीं इसमें भी भारतीय जनता पार्टी को ही फायदा पहुंचता नज़र आ रहा है।
आपको भी पता ही होगा कि भाजपा और उसके घटक दल यानी एनडीए ने घोषणा कर दी है कि आगामी लोकसभा चुनाव भी मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा तो अब मोदी के फैसलों पर जनता की राय उत्तर प्रदेश में तो सबके सामने आ ही गई फिर लोक सभा मे बनने वाला महागठबंधन जनता की राय बदलने में कैसे सफल होगा ये देखना काफी रोचक रहेगा।