लखनऊ, शैलेन्द्र कुमार। आज कल हर नेता की जुबान पर कानून और पुलिस के कामों की चर्चा रहती है। सभी पार्टियाँ और सभी बड़े नेता सिर्फ यही गा रहे हैं कि उनकी सरकार में कानून कितना अच्छा और सचेत होकर चलता है। लेकिन हकीकत तो और ही होती है। जहां हम कानून और पुलिस वालों को अपना रक्षक मानते हैं वहीं वह हमारे लिए भक्षक बन जाते हैं।
कुछ ऐसा ही अब से 20 साल 103 दिन पहले हुआ था। बता दें कि 8 नवंबर 1996 को भोजपुर पुलिस ने चार युवकों को मार कर एक ऐसी घटना को अंजाम दिया था जो कि पुलिस की संवेदनहीनता को दर्शाता है।
सीबीआई कोर्ट ने 20 साल पहले भोजपुर में हुए 4 युवकों के किये गये इस एनकाउंटर को फर्जी माना है। सोमवार को विशेष सीबीआई न्यायाधीश राजेश चौधरी की कोर्ट ने मामले में चार पुलिस वालों को हत्या व फर्जी सुबूत पेश करने के आरोप में दोषी करार दिया। और उनकी सजा पर बहस 22 फरवरी को होगी।
विशेष सीबीआई कोर्ट ने 226 पेज के फैसले में सीबीआई की थ्योरी को सही माना कि भोजपुर फर्जी एनकाउंटर में मारे गए चारों युवक निहत्थे थे। और पुलिस उन्हें चाय की दुकान से उठाकर ले गई थी। और उनमें से दो युवकों को पुलिया पर और दो युवकों को ईंख के खेत में मार गिराया था।
और इस घटना को मुठभेड़ साबित करने के लिए उनके पास तमंचे रख दिए थे और उनसे 16 राउंड फायर किए जाने का दावा किया था। इस मामले में 112 लोगों की गवाही हुई। और इतनी बड़ी घटना का षड्यंत्र रचने और इसको अंजाम देने का काम सिर्फ आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने के लिए किया गया।
8 नवंबर 1996 को भोजपुर में मारे गए युवकों में मोदीनगर की विजयनगर कालोनी के जलालुद्दीन, प्रवेश, जसवीर और अशोक थे, जो फैक्ट्री में नौकरी और मजदूरी करते थे। मृतकों के परिजनों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया था और सीबीआई जांच की मांग की थी। और 7 अप्रैल 1997 को सीबीआई को इस मामले की जांच सौपी गई थी।
10 सितंबर 2001 को सीबीआई ने कोर्ट में चार्जशीट पेश की थी, जिसमें तत्कालीन भोजपुर एसओ लाल सिंह, एसआई जोगेंद्र, कांस्टेबल सुभाष, सूर्यभान और रणवीर को आईपीसी की धारा 302, 149, 193 और 201 के तहत आरोपी बनाया था। और केस की सुनवाई के दौरान 27 अप्रैल 2004 को रणवीर की मृत्यु हो गई थी। बाकी चारों पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने दोषी करार दिया है।
लेकिन जमानत पर चल रहे लाल सिंह, जोगेंद्र और सुभाष कोर्ट में उपस्थित थे, जिन्हें हिरासत में लेकर डासना जेल भेज दिया गया, जबकि सूर्यभान इलाहाबाद गया हुआ था, वह उपस्थित नहीं हो सका। उसके अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि वह गाजियाबाद के लिए रवाना हो गया है। ट्रेन का एक्सीडेंट होने की वजह से उसे देर हो गई है।
बता दें कि इस काण्ड के दोषियों में रिटायर्ड डिप्टी एसपी लाल सिंह भोजपुर, एसआई जोगेंद्र आगरा का, कांस्टेबल सुभाष इंचौली मेरठ का जबकि सूर्यभान सराय इनायत इलाहाबाद का रहने वाले हैं।
जिसे कानून का रक्षक कहा जाता है अगर वही प्रमोशन के लिए यूं बेकसूर और आम जनता को अपना निशाना बनाने लगे तो यहां की आम जनता किसका दरवाजा खटखटायेगी। जिन कानून के रखवालों के सहारे हम अपने आप को और अपने परिवार को सुरिक्षत छोड कर अपना काम बेफिक्री के साथ करते हैं अगर वही अपने फायदे के ऐसी घटनाओं को अंजाम देने लगे तो आम जनता का तो कानून से भरोसा ही उठ जायेगा।
सरकारें सिर्फ अपनों कामों को और दूसरों की नाकामयाबियों को ही गिनाने में लगी हैं। कानून व्यवस्था पर तो किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। सरकारों को तो कानून के रखवालों पर एक जुट होकर ध्यान देना चाहिए न की आपस में दूसरी पार्टी के कानून की अव्यवस्थाओं को गिनाना चाहिए। क्योंकि इसमें तो सिर्फ और सिर्फ जनता का ही नुकसान होता है।