नई दिल्ली/चेन्नै।तमिलनाडु में जारी राजनीतिक घमासान पर बीजेपी नजर जमाए हुए है। दो धड़ों के बीच जारी रस्साकशी में बीजेपी अपना दांव पूर्व सीएम ओ पन्नीरसेल्वम पर खेल रही है। बीजेपी से जुड़े लोगों का तर्क है कि दिवंगत नेता जयललिता की पहली पसंद पन्नीर ही रहे हैं। जब-जब जयललिता को पद छोड़ना पड़ा, उन्होंने अपनी जगह पन्नीर को ही दी। ऐसे में बीजेपी का मानना है कि जया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले वही हैं। अभी राज्य में असेंबली चुनाव होने के लिए चार साल का वक्त बाकी है। ऐसे में बीजेपी एक ऐसी पार्टी के तौर पर दिखनी चाहती है, जो जयललिता की पसंद के शख्स के साथ नजर आए। पार्टी के मुताबिक, 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी यह नीति उसके लिए फायदेमंद साबित होगी।
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने 2019 के चुनावों के मद्देनजर राज्य के लिए अपना लक्ष्य काफी बड़ा रखा है। यहां की 39 संसदीय सीटों में से वह कम से कम 15 सीटें जीतना चाहती है। बीजेपी नेतृत्व का एक धड़ा मानता है कि अधिकतर एआईएडीएमके नेता आने वाले वक्त में इस उम्मीद के साथ पन्नीरसेल्वम के पीछे खड़े नजर आएंगे कि उन्हें केंद्र सरकार का पूरा समर्थन हासिल होगा। चूंकि, सारे विधायक अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं, ऐसे में बीजेपी को लगता है कि पन्नीर के कमान संभालने के बाद राज्य में स्थिर सरकार कायम रह सकती है।
2014 आम चुनाव में 282 सीटें जीतने वाली बीजेपी का नेतृत्व अब उन इलाकों में अपना असर बढ़ाने की कोशिशों में लगा हुआ है, जहां उसकी राजनीतिक दखल कम है। पारंपरिक गढ़ों में उसकी मौजूदगी को और मजबूत करने की गुंजाइश अब कम ही है। तमिलनाडु जैसे राज्य में बीजेपी का प्रभाव बेहद कम है। उसके पास यहां चर्चित या विश्वसनीय चेहरे नहीं हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर असर बढ़ाने के लिए उसे दूसरी पार्टियों के नेताओं पर फिलहाल निर्भर रहना होगा।
हालांकि, बीजेपी को यह पता है कि इस इलाके की राजनीति में पैठ बनाने के लिए उसे अभी काफी काम करना है, लेकिन जयललिता की मौत के बाद पैदा हुए राजनीतिक शून्य को पार्टी एक बड़े मौके के तौर पर देख रही है। पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भी बीजेपी इस राज्य में भुनाने के मूड में है। हालांकि, बीजेपी की मुख्य कोशिश राज्य की विपक्षी पार्टी डीएमके को राजनीतिक हाशिए पर रखने की है। पार्टी का प्लान यही है कि करुणानिधि की राजनीतिक विरासत संभालने जा रहे एमके स्टालिन को एआईएडीएमके में जारी संकट का राजनीतिक फायदा उठाने का मौका न मिले।