लखनऊ
यूपी लोकसभा उपचुनाव (गोरखपुर और फूलपुर) में मिली हार के बाद बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। पार्टी को 2019 से पहले कई बाधाएं पार करनी हैं। इसमें ताजा चुनौती राज्यसभा में अपने नौवें प्रत्याशी को जिताने की है और सहयोगी दल एसबीएसपी के ओम प्रकाश राजभर के बगावती तेवर ने खलबली मचा दी है।
इसके अलावा कैराना
लोकसभा
और नूरपुर विधानसभा सीट पर भी एसपी-बएसपी साथ आईं तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी होगी। एसपी-बएसपी और आरएलडी में बढ़ती करीबी से भी बीजेपी की चिंता बढ़ गई है।
एसपी-बीएसपी की दोस्ती ने बिगाड़ा खेल
राज्यसभा के लिए जब नामांकन हुआ था, तब फूलपुर और
गोरखपुर
उपचुनाव के नतीजे नहीं आए थे। तब बीजेपी को यह एहसास ही नहीं था कि वह दोनों जगह हार जाएगी। विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी के आठ प्रत्याशियों का जीतना तय है, लेकिन पार्टी ने नौवें प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया। इसी बीच एसपी-बीएसपी का तालमेल हुआ। एसपी दोनों सीटें जीत गई और राज्यसभा में बीएसपी को साथ देने का वादा कर दिया।
राज्यसभा के लिए बीएसपी को 37 विधायक चाहिए। उसके पास 18 विधायक हैं जबकि एसपी के 10,
कांग्रेस
के सात और आरएलडी के एक विधायक को जोड़कर उसके पास 37 विधायक हो जाते हैं। ऐसे में बीजेपी और उसके विरोधी एक-दूसरे के खेमे में भी सेंधमारी में भी जुटे हैं। इस बीच बीजेपी के सहयोगी दल सुलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर बगावत पर उतर आए हैं। फिलहाल बीजेपी उन्हें मनाने की कोशिश में जुटी है।
दलित-मुस्लिम बिगाड़ सकते हैं गणित
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई कैराना और विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन से खाली हुई नूरपुर सीट पर भी उपचुनाव होने हैं। इसके लिए अभी से बीजेपी विरोधियों के एकजुट होने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। कैराना में
आरएलडी
अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है।
पिछले दिनों
अखिलेश यादव
के आवास पर हुई बैठक में उन्होंने मिलकर चुनाव लड़ने का इशारा किया था। उधर, बीएसपी के अपना प्रत्याशी उतारने या आरएलडी को समर्थन करने की भी चर्चा है। बीजेपी की चिंता यह है कि पश्चिमी यूपी में अगर तीनों दल एक हो गए तो सीटें बचा पाना मुश्किल होगा। वजह यह है कि ये सीटें मुसलमान और दलित बहुल हैं। कुछ वोट जाटों का भी है। बीजेपी में इस पर चिंतन भी शुरू हो गया है।