नई दिल्ली। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए ने 2009 में फिर से जीत हासिल कर अपना दूसरा कार्यकाल यानी यूपीए-2 शुरू किया था। कांगेस की अगुवाई वाली सरकार का कामकाज सब ठीक चल रहा था, तभी 2G घोटाले की गूंज ने न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि पूरे देश की राजनीति की दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया।
ऐसे में गुरुवार को जब स्पेशल कोर्ट ने इसके आरोपियों को केस से बरी किया तो उसके मायने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आदेश आने के महज 30 मिनट के अंदर कांग्रेस की ओर से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, पूर्व टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल समेत पार्टी आक्रामक होकर मीडिया के सामने आ गई। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में सरकार के शीर्ष मंत्री भी आक्रामक रुख अपनाकर सामने आए। दरअसल, ‘2जी’ एक घोटाला ही नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन गई थी। उसी प्रतीक को अपने-अपने हिसाब से परिभाषित करने का राउंड टू सियासत गुरुवार को शुरू हुआ।
2G घोटाले ने कांग्रेस की जड़ें हिला दी थीं
यूपीए-2 के दौरान 2जी घोटाले ने पूरे देश का ध्यान तब खींचा, जब तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने इस मामले में 1,76,000 करोड़ रुपये की सरकारी हानि को दिखाती रिपोर्ट पेश की। यह नए भारत का सबसे बड़ा प्रतीकात्मक घोटाला बना। इसी घोटाले के बाद अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की लोकपाल की लड़ाई और बीजेपी में नरेंद्र मोदी के रूप में नया नेतृत्व स्थापित करने का दौर शुरू हुआ। देश ने पहली बार एंटी करप्शन मूवमेंट भी देखा गया। कांग्रेस के दामन पर 2जी का ऐसा दाग लगा, जिससे आने वाले दिनों में हर दूसरा मामला इस दाग को और गहरा करता गया।
यूपीए-1 (2004-09) के दौरान जो मनमोहन सिंह बेहतर गर्वनेंस की छवि वाले पीएम बने थे, वहीं दूसरे टर्म में इस घोटाले की बुनियाद पर सबसे कमजोर पीएम की इमेज में बंधन लगे, जिनके सामने सरकारी खजाने की लूट हुई। और आखिरकार इसी करप्शन के दाग तले 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह हाशिए पर आ गई। इस मुद्दे के बाद ही करप्शन देश की राजनीति में पहली बार केंद्रीय मुद्दे के रूप में आया, जिसके सहारे नरेंद्र मोदी ने पूरे देश की भावनाओं को अपने साथ किया। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने भी इस मुद्दे के सहारे राजनीति का सफर तय कर लिया।
8 साल बाद आया मोड़
लेकिन क्या 8 साल बाद 2जी मामले में आए मोड़ से चीजें बदलेंगी? गुरुवार को सबसे बड़ा सवाल यही रहा। जिस दाग ने कांग्रेस को अर्श से फर्श तक पहुंचाया, अब उसी मामले में आए फैसले को पार्टी अपने लिए संजीवनी बूटी मान रही है। संसद में कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा कि जिस तरह 2जी घोटाले का दाग लगाकर पार्टी को बदनाम किया गया, अब पार्टी उसी आक्रामक तरीके से इसे साजिश के दाग के रूप में पूरे देश में पेश करेगी और बाकी मामले को भी इससे जोड़ेगी। यही कारण है कि कांग्रेस ने अपने हमले में बीजेपी के साथ विनोद राय को भी लपेटा और कहा कि यह सुनियेाजित साजिश थी।
दिलचस्प बात है कि अब तक बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ 2जी को प्रतीक के रूप में पेश कर रही थी, अब उसी प्रतीक का इस्तेमाल कांग्रेस अपने पक्ष में करेगी। वहीं, बीजेपी निश्चित तौर पर बैकफुट पर है, लेकिन पार्टी को लगता है कि हाई कोर्ट में दोबारा अपील किए जाने से मुद्दा फिर जी सकता है। ऐसे में अब 2019 से पहले करप्शन के इस प्रतीक मुद्दे के नए अंदाज में सामने आने के बाद अब आगे इसकी दिशा क्या होगी, यह देखना रोचक होगा।
तमिलनाडु की राजनीति में होगा असर?
क्या इसका असर तमिलनाडु की राजनीति पर पड़ेगा? दरअसल, हाल के दिनों में पूरी तरह अस्थिरता की शिकार तमिलनाडु में सभी राजनीतिक विकल्प खुले दिख रहे हैं। पिछले दिनों जिस तरह पीएम मोदी, डीएमके के वयोवृद्ध नेता करुणानिधि को देखने उनके घर गए, उससे नए राजनीतिक समीकरण की चर्चाएं चलीं। लेकिन उस समय दोनों दलों ने इस चर्चा को खारिज किया था।
दरअसल, जिस तरह जयललिता के निधन के बाद राज्य में एआईएडीएमके आंतरिक विघटन का शिकार हुई, ऐसे में बीजेपी को राज्य में मजबूत सहयोगी की तलाश है। राज्य में लोकसभा की 39 सीटें हैं, जो 2019 में सरकार के गठन में अहम भूमिका निभा सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने फैसला आने के तुरंत बाद अपनी सहयोगी डीएमके को याद दिलाया कि किस तरह दोनों दल खराब दिनों में साथ रहे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने डीएमके नेता स्टालिन से बात की। मतलब इस फैसले का असर वहां की राजनीति पर भी पड़ना तय है।