उत्तर प्रदेश में पांच चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है जिसके बाद सभी निगाहें छठें चरण की ओर हैं। लेकिन राजनीतिक पंडितों की निगाहें अभी भी सबसे ज्यादा पांचवें चरण पर ही अटकी हुई हैं। उसकी वजह है इस चरण में हुआ कम मतदान।
पांचवें चरण में वोटरों की बेरुखी ने राजनीतिक दलों की धुकधुकी बढ़ा दी हैं तो राजनीतिक पंडित भी उलझन में हैं। पांचवे चरण में मतदान प्रतिशत 60 फीसदी से भी कम रहने का असर किसी न किसी पार्टी के वोट बैंक पर भी पड़ना तय है लेकिन दावा हर कोई अपने अपने पक्ष में कर रहा है।
11 जिलों की 51 सीटों पर मतदान प्रतिशत का बस 57.32 फीसदी पर अटक जाना हर किसी के लिए चिंता बढ़ाने वाला है। खास बात ये है कि इस चरण में ज्यादातर चुनाव वीआईपी जिलों में हुआ, जिनमें अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर प्रमुख थे, लेकिन इन्हीं जिलों में सबसे कम मतदान हुआ।
हालांकि इस कम मतदान में भी सभी पार्टियां अपने लिए उम्मीद ढूंढने में लगी हैं। मसलन कम मतदान को हमेशा अपने फेवर में मानने वाली बसपा तो इस बार भी यही उम्मीद पाले बैठी है।